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द्रव्य संग्रह निकल जाते हैं जो स्फटिक के समान शुद्ध स्वच्छ होता है वह शरोर परमौदारिक शरीर कहलाता है ।
प्र.-अरिहन्तों के साथ शुद्ध विशेषण क्यों दिया ?
उ०-अठारह दोषों से रहित होने से वे शुद्ध आन्मा हैं इसलिए शुद्ध विशेषण दिया है।
सिद्ध परमेष्ठी का स्वरूप गट्टकम्मवेहो, लोयालोयस्स जाणो बट्ठा । पुरुसायारो अप्पा, सिद्धोझाएह लोयसिहरत्थो ।। ५१ ॥
बाययार्थ
(गट्टकम्मदेहो ) आ5 कर्म और पांच शरीर रहित । ( लोयालोयस्स) लोक और अलोक का (जाणओ) ज्ञाता। (दहा ) और द्रष्टा । पुरुसायारो) पुरुपाकार । ( लोयसिहरस्थो । लोक के शिखर पर स्थित । ( अप्पा ) आस्मा । ( सिद्धो ) मिद्ध परमेष्ठी हैं। (झाएह ) तुम सभी उनका ध्यान करो। अर्थ
आठ कर्मों तथा पांच शरीरों से रहित, लोक-अलोक को जानने व देखने वाले, पुरुषाकार से लोक के शिखर पर स्थित आत्मा सिद्ध परमात्मा है, उनका ध्यान करो।
प्र-ध्यान के लिए योग्य कौन हैं ? उ०-सिद्ध परमात्मा ध्यान के योग्य है। प्रा-सिद्ध परमात्मा कैसे होते हैं ?
३०-जो ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय--इन आठ कर्मों से रहित हैं, औदारिक, येक्रयिक, आहारक, तजस व कार्मण शरीर से रहित है, वे लोक-अलोक को जानने वाले हैं । वे सिद्ध परमेष्ठो हैं।
प्रा-सिद्ध परमेष्ठी कहाँ रहते हैं ? उ.-लोक के अग्रभाग में रहते हैं । प्र.-लोक के अग्रभाग को क्या कहते हैं ? उ.-'सियालय'।