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दव्य संग्रह अर्थ
अशुभ कार्यों को छोड़ना और शुभ कार्यों में प्रवृत्ति करना जिनेन्द्र भगवान द्वारा कहा हुआ व्यवहार चारित्र जानो और वह चारित्र पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्तिरूप से १३ प्रकार का है।
प्र०-व्यवहार चारित्र किसे कहते हैं ?
उ०-अशुभ कार्यों-हिंसा, झूठ, चोरी, नशील और परिग्रह पापों का स्याग करना, अयस्ताचार पूर्वक चलना, बोलना, बैठना, खाना आदि न करना तथा अशुभ मन-वचन और काय को वश में करना तथा शुभ कार्यों में प्रति करना शहार पारित है।
निश्चय चारित्र का स्वरूप बहिरम्भंतरकिरियारोहो भवकारपप्पणासटुं।
णागिस्स जं जिणुतं तं परमं सम्माचारितं ॥४६॥ अम्बयार्ष
(भवकारणप्पणासट्ठ ) संसार के कारणों को नष्ट करने के लिए। ( णाणिस्स )शानी पुरुष का । (5) जो। (बहिरमंतरकिरियारोहो) बाह और आभ्यन्तर क्रियाओं का रोकना । (२) वह। ( जिणुतं) जिनेन्द्र देव द्वारा कहा हुआ। ( परमं ) उत्कृष्ट निश्चय । ( सम्मचारितम् ) सम्यकचारित्र है। अर्थ___ संसार के कारणों को नष्ट करने के लिए ज्ञानी पुरुषों के द्वारा बाह्यआभ्यन्तर क्रियाओं को रोकना निश्चय सम्यक् चारित्र, ऐसा जिनेन्द्रदेव के द्वारा कहा हुआ है।
प्र०-संसार किसे कहते हैं ?
उ०-'संसृति इति संसार' जहाँ जाव चारों गतियों में घमता है वह संसार है।
प्र-संसार का कारण क्या है ? उ-बाह्य और आभ्यन्तर क्रियाएँ संसार को कारण है। प्र-बाह्य क्रिया कौन-सी है?
To-कायिक और वाचनिक क्रियाएँ--हिंसा, झूठ, चोरो, कुशोल जौर परिग्रह माविबाह क्रियाएं हैं।