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द्रव्य संग्रह
प्र०-प्रायश्चित तप के भेद व लक्षण बताइये ।
३०-प्रायश्चित तप के नव भेद-१-आलोचना, २-प्रतिक्रमण, २-तदुभय, ४-विवेक, ५-व्युत्सर्ग, ६-तप, ७-छेद, ८-परिहार, १-उपस्थापना । अपराध की शुद्धि करना प्रायश्चित है।
प्र०-विनय के भेद बताइये तथा लक्षण कहिये।
उ.-१-शान विनय,-दर्शन विनय, ३-चारित्र विनय, ४-उपचार विनय । ये चार भेद हैं । पूज्य पुरुषों का आदर करना विनय है।
प्र०-वैश्यावृत्य का भेद व लक्षण बताइये।
उ.-वैग्यावरय तप के १० भेद हैं-१-आचार्य, २-उपाध्याय, ३-तपस्वी, ४-शैक्ष्य, ५-ग्लान, ६-गण, ७-कुल, ८-संघ, ९-साष, १०-मनोज्ञ। इन दस प्रकार के मुनियों को सेवा करना दस प्रकार की
म्यावृत्य है। शरीर तथा अन्य वस्तुओं से मुनियों की सेवा करना वैय्यावृत्य तप है।
प्रा-स्मानाय तप के भेद व लक्षण बताओ।
उ०-स्वाध्याय ५ प्रकार का है-१-वाचना, २-पृच्छना, ३- अनुप्रेक्षा, ४-आम्नाय और ५-धर्मोपदेश । ज्ञान को भावना में आलस्य नहीं करना स्वाध्याय है। प्र०-व्युत्सर्ग के भेद व लक्षण बताइये।
-प्युत्सर्ग तप के २ भेद-बाह्य और आभ्यन्तर । धन-धान्यादि बाह्म परिग्रहों का त्याग तथा क्रोधादि अशुभ भावों का रयाग। बान और आभ्यन्तर परिग्रहों का त्याग व्युत्सर्ग तप है । प्र.-ध्यान तप के भेद व लक्षण बताओ।
उन-ध्यान तप के चार भेद हैं-१-आर्तध्यान, २-रौद्र ध्यान, ३-धर्य ध्यान और ४-शुक्ल ध्यान । चित्त को चंचलता को रोककर किसी एक पदार्थ के चिन्तन में लगाना ध्यान है।
प्र०-मनन को कौन सा तप करना चाहिए ? और क्यों ?
.-मुमुक्षु को बाध और अन्तरंग दोनों तप करना आवश्यक है। इसके बिना मोक्ष की विधि बन नहीं सकती है। दोनों तप एक सिक्के के दो पहलू के समान है । एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं है। रोटो दोनों ओर से सेकी जातो है तब शरीर को पुष्ट करती है। वैसे ही दोनों तपों को तपने बाला ही सच्चे शानामृत का पान पर आत्मा को पुष्ट बनाकर मुणित-महल ले जा सकता है।