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________________ . . . . . . . . .. .: .. सुंग और आन्ध्र राज्यों में दिगम्बर मुनि . . .. . [१४] . MARAvi "The Andhra or Satvahana rule is characterised by almost the same social features as the farther south; but in point of religion they scem to have heen grcal patrons of the Jainas & Buddhists." -S.K. Aiyangar's Ancient India, p. 34 अन्तिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ का उसके सेनापति पुष्यमित्र सुंग ने वध कर दिया था। इस प्रकार मौर्य साम्राज्य का अन्त करके पुष्यमित्र ने 'सुंग राजवंश' की स्थापना की थी। नन्द और मौर्य साम्राज्य में जहाँ जैन और बौद्ध धर्म उन्नति को प्राप्त हुये थे. वहाँ सुंग वंश के राजत्व काल में ब्राह्मण धर्प उन्नत अवस्था को प्राप्त हुआ था किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि ब्राह्मणेत्तर जैन आदि धमों पर इस समय कोई संकट आया हो। हम देखते हैं कि स्वयं पुष्यमित्र के राजप्रासाद के सन्निकट नन्दराज द्वारा लाई गई, कलिंग जिन की मूर्ति सुरक्षित रही थी। इस अवस्था में यह नहीं कहा जा सकता है कि इस समय दिगम्बर जैन धर्म को विकट बाधा सहनी पड़ी थी। उस पर संग राजागण अधिक समय तक शासनाधिकारी भी न रहे। भारत के पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त और पंजाब की ओर तो यवन राजाओं ने अधिकार जमाना प्रारम्भ कर दिया और मगध तथा मध्य भारत पर जैन सम्राट खारवेल तथा आन्ध्र राजाओं के आक्रमण होने लगे। खारवेल को पागध विजय में आन्ध्रवंशी राजाओं ने उनका साथ दिया था। मगध पर आन्ध्र राजाओं का अधिकार हो गया। इन राजाओं के उद्योग से जैन धर्म फिर एक बार चमक उठा। आन्ध्रवंशी राजाओं में हाल, पुलुमायि आदि जैन धर्म प्रेमी कहे गये हैं। इन्होंने दिगम्बर जैन मुनियों को विहार और धर्म प्रचार करने की सुविधा प्रदान की प्रतीत होती है। उज्जैनी के प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य भी इसी वंश से सम्बन्धित बताये जाते है। वह शैव थे, परन्तु उपरान्त एक दिगम्बर जैनाचार्य के उपदेश से जैन हो गये थे। 8. In the decadance that suflowed the death of Ashoka, the Andhras keem to have had their own share and they may possibly have helped Kharvela or Kalinga, whoun lic invaded Magadba in the Middle of the 2nd century B.C. when the kanvar were overthrown TheAndhras extend their power northwards &occupy Magadha. SAI.pp.15-16 २.J3ORS.I.T-1IR.&CIE.I.p.532. 3. Allahalrad L'niversity Studios, Pt. 11.pp. 113–147. (76) दिगम्बरव और दिगम्बा पनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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