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इन साधुओं को जहाँ भी अवसर मिलता था वहाँ अपने धर्म को श्रेष्ठता को प्रमाणित करके अवशेष धर्मों को गौण प्रकट करते थे।
भगवान महावीर और महात्मा गौतम बुद्ध दोनों ने ही अहिंसा धर्म का . उपदेश दिया था, किन्तु भगवान महावीर की अहिंसा में मन, वचन, काय पूर्वक जीवहत्या से विलग रहने का विधान था-भोजन या मौज शौक के लिये भी उसमें जीवों का प्राण व्यपरोपण नहीं किया जा सकता था। इसके विपरीत महात्मा बुद्ध की अहिंसा में बौद्ध भिक्षुओं को मांस और मत्स्य भोजन ग्रहण करने को खुली आज्ञा थी ।एक बार नहीं अनेक बार स्मयं महात्मा बुद्ध ने माँस-पाक्षण किया था। ऐसे ही अवसरों पर दिगम्बर मुनि, बौद्ध भिक्षुओं को आड़े हाथों लेते थे। एक परतवा जब भगवान महावीर ने बुद्ध के इस हिंसक कर्म का निषेध किया, तो बुद्ध ने कहा 'भिक्षओ, यह पहला मौका नहीं है, बल्कि नातपत्त (महावीर) इससे पहले भी कई परतबा खास पेरे लिये पके हुए माँस को मेरे भक्षण करने पर आक्षेप कर चके हैं।"र एक दूसरी बार जब वैशाली में महात्मा बद्ध ने सेनापति सिंह के घर पर माँसाहार किया तो बौद्ध शास्त्र कहता है कि 'निग्रंथ एक बड़ी संख्या में वैशाली में सड़क-सड़क, चौराहे-चौराहे पर यह शोर मचाते कहते फिरे कि आज सेनापति सिंह ने एक बैल का वध किया है और उसका आहार श्रमण गौतम के लिये बनाया है। श्रपाम गौतम जानबूझकर कि यह बैल मेंरे आहार के निमित्त पारा गया है पशु का पॉस खाता है, इसलिए वही उस पशु के मारने के लिए बधक है। इन उल्लेखों से उस समय दिगम्बर मुनियों का निर्बाध रूप में जनता के मध्य विचरने और धोपदेश देने का स्पष्टीकरण होता है।
बौद्ध गृहस्थों ने कई परतवा दिगम्बर पुनियों को अपने घर के अन्तःपुर में बलाकर परीक्षा की थी। सारांशतः दिगम्बर मुनि उस समय हाट-बाजार, घर-पहल, रंक-राव सब ठौर सब ही करें धर्मोपदेश देते हुए विहार करते थे। अब आगे के पृष्ठों में भगवान महावीर के उपरान्त दिगम्बर मुनियों के अस्तित्व और विहार का विवेचन कर देना उचित है।
१. ममबु., पृ. १७०। २.Cowellatakss 11, 182-भमवु.,पृ. २४६ ।
3. "At the time a great number of the Nigathas running through Vaisali, from roud to road, cross-way to crass-way, with outstretched arous cicd.' Today siha, the General has killcd a great ox and has made a mical for the Sarnana Gotama, the Sarmana Golama knowingly cals this meat of an animal killed for this very purpose, & has that become virually the author of that dict".- Vinaya Texts,SBE., VOL.XVII, p. 116& HG., p.85. ४H.G., PP,88-95 भमवु. ए, पृ. २४१-२५६ ।
दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि
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