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________________ है। इस संस्कृति पर दो प्रकार के आक्रमण हुए हैं। प्रत्यक्ष आक्रमण व परोक्ष आक्रमण। प्रथम आक्रमण का स्वरूप विध्वंसकारी, हिंसक, अपमानजनक रहा है। यह आक्रमण विधर्मियों द्वारा हुआ है तथा द्वितीय आक्रमण का स्वरूप इतिहास तथा आगम में परिवर्तन करके रीति-रिवाज, तत्व, तथ्य में संदेह पैदा करना रहा है। यह आक्रमण योजनाबद्ध प्रेम मिश्रित छल, भाईचारे एवं एकता की आड़ में धन के बल पर महावीर के शिष्यों ने अपनी हठपूर्ण शिथिलता के समर्थन में किया है। . हमारी संस्कृति को जनमत का समर्थन प्राप्त है तथा यह संस्कृति आज भी विश्व को आश्चर्यचकित करने वाली प्राचीन धरोहर की धनी हैं। किन्तु आक्रमण से बची हुई साम्रगी हमारी असावधानी, उपेक्षा, अने काग्रता, फूट. मत-भेद, जाति-भेद, पंथ-भेद के कारण सुरक्षा की आशा छोड़ चुकी है तधा जिनालय के अवशेष खंडहर, अथवा हस्तलिखित जिनवाणी दीमक की ग्राम कहीं बीहड़ जंगल में पड़े जिनबिम्ब अपने उन लाड़लों का स्मरण कर रहें हैं जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर कभी उनकी रक्षा की थी। इनको सम्पूर्ण आशा भावी युवाओं पर टिकी हैं, जो अपने आपसी जाति, पंथगत भेद पिटा कर प्रेम, त्याग, समर्पणपूर्ण संगठन को भावना दिगम्बर समाज में जागृत करके शारीरिक, आर्थिक, बौद्धिक, राजनैतिक शक्ति को संचित करके 'दिगम्बराःसहोदराः सर्वे सूत्र वाक्य के आधार पर रक्षा कर सकते हैं। अतः दिगम्बर संस्कृति की मौलिकता प्रापाणिकता सिद्ध करने हेतु एवं ऐतिहासिक पुरातात्विकत, शौर्यता, सत्यता की वास्तविक जानकारी कराने हेतु यह पुस्तक वाचू कामता प्रसाद जी को अमूल्य निधी है। इसका पुनः प्रकाशन हो ऐसी भावना पाप पूज्य आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी को रही है। इस प्रकाशन में उनका आशीष वचन मौखिक रूप से प्राप्त है तथा प्रकाशक संगठन भी धन्यवाद का पात्र है। दिगम्परत्व और दिगम्ग मुनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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