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________________ सांस्कृतिक चेतना मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसका गौरव, स्वाभिमान, उसकी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति, साहित्य, स्थापत्य, वास्तु, शिल्प कला में निहित है। कर्थ वैभव सम्पन्न शिल्प मनुष्य को प्रतिष्ठा से जुड़े हुए तथ्य हैं। प्राचीनता इतिहास को कच्ची साम्रगी है। इतिहास रूपी भवन का निर्माण प्राचीनता की नींव पर ही होता है। जो समाज/जाति अपनी प्राचीनता की रक्षा नहीं कर पाई, उसका नाम इतिहास के पृष्ठों में या तो मिलता ही नहीं और यदि मिलता है तो कपोल कल्पना के आधार पर विकृत इतिहास ही जन-मानस के सामने आता है, उस जाति का दार्शनिक, सैद्धान्तिक, तात्विक स्वरूप ही बदल जाता है। अतः पूर्वजों, संस्थापकों, स्थिति पालकों की समूची साधना व्यर्थता को प्राप्त हो जाती है तथा उस जाति को स्थिति विश्व में सदैव बौनी ही रहेगी। भले ही आर्थिक, औद्योगिक स्थिति विकासशील उन्नत हो । प्रत्येक समाज/जाति अपनी परम्पराओं/ संस्कृति को उच्च प्राचीन रहस्यपूर्ण सत्य के निकट आदर्श मोक्षमार्ग युक्त सिद्ध करने का प्रयास करती है तथा अन्य समाज/जाति को संस्कृति रोति अव्यावहारिक, अकल्याणकारी सिद्ध करने का प्रयास करती है और जब वह इस प्रयास में सफल नहीं होती तब वह जाति / समाज अन्य संस्कृति पर आक्रमण के तेवर अपनाती है। आकमण के प्रथम चरण में प्राचीनता को नष्ट करना तथा साहित्य को समाप्त करना होता है। दिगम्बर संस्कृति सर्वप्राचीन विकसित अहिंसा, अपरिग्रह, तप, त्याग को पूर्ण व्यावहारिक रूप देने वाली एवं तीर्थ, शिलालेख, शिल्प, वैभव तथा साहित्य सम्पत्र वीतराग भावना युक्त तत्वनिष्ठ, निश्छल, शाकाहारी, करुणामय संस्कृति है। इसी कारण यह ईर्ष्या आक्रमण की पात्र रही दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुझे
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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