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________________ सचमुच अनेक धर्म-पिपासु भगवान के निकट आकर धर्माप्त पान करते थे। यहाँ तक कि स्वयं महात्मा गौतमबुद्ध और उनके संघ पर भगवान् के उपदेश का प्रभाव पड़ा था। बौद्ध भिक्षुओं ने भी नग्नता धारण करने का आग्रह महात्मा बुद्ध से किया था।' इस पर यद्यपि महात्मा बुद्ध ने नान वेष को बुरा नहीं बतलाया, किन्तु उससे कुछ ज्यादा शिष्य पाने का लाभ न देखकर उसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। किन्तु तो भी एक सपय नेपाल के तांत्रिक बौद्धों में नग्न साधुओं का अस्तित्व हो गया था।' सच बात तो यह है कि नग्न वेष को साधु पद के भूषण रूप में सब ही को स्वीकार करना पड़ता है। उसका विरोध करना प्रकृति को कोसना है। उस पर महात्मा बुद्ध के जमाने में तो उसका विशेष प्रचार था। अभी भगवान महावीर ने धर्मोपदेश देना प्रारम्भ नहीं किया था कि प्राचीन जैन और आजीविक आदि साधु नंगे धूमकर उसका प्रचार कर रहे थे। देखिये बौद्ध ग्रंथो के आधार से इस विषय में डॉ. स्टीवेन्सन लिखते हैं एक तीर्थक नग्न हो गया) लांग उसके लिय बहुत से वस्त्र लाये, किन्तु उनको उसने स्वीकार नहीं किया। उसने यहीं सोचा कि 'यदि में वस्त्र स्वीकार करता हूँ तो संसार में मेरी अधिक प्रतिष्ठा नहीं होगी। वह कहने लगा कि लज्जा रक्षक के लिए ही वस्त्रधारण किया जाता है और लज्जा ही पाप का कारण है, हम अर्हत् हैं, इसलिए विषय वासना से अलिप्त होने के कारण हमें लज्जा को कुछ भी परवाह नहीं।' इसका यह कथन सनकर बड़ी प्रसन्नता से वहां इसके पाँच सौ शिष्य बन गए बल्कि जम्बूद्वीप में इसी को लोग सच्चा बुद्ध कहने लगे।" यह उल्लेख संभवतः मक्खलि गोशाल अथवा पूर्ण काश्यप के सम्बन्ध में हैं। ये दोनों साधु भगवान् पाश्र्वनाथ की शिष्य परम्परा के मनि थे।' पक्खलि गोशाल भगवान महावीर से रुष्ट होकर अलग धर्म प्रचार करने लगा था और वह “आजीविका सम्प्रदाय का नेता बन गया था। इस सम्प्रदाय का निकास प्राचीन जैन धर्म से हुआ था और इसके साधु भी नग्न रहते थे। पूरण-काश्यप गोशल का साथी और वह भी दिगम्बर रहा था। सचमुच दिगम्बर जैन धर्म पहले से ही चला आ रहा था, जिसका प्रधान इन लोगों पर पड़ा था। उस पर भगवान महावीर के अवतीर्ण होते ही दिगम्बरत्व का महत्व और भी बढ़ गया। यहाँ तक कि दूसरे सम्प्रदायों के लोग भी नग्न वेष धारण करने को लालायित हो गये, जैसा कि ऊपर प्रकट किया गया है। बौद्धशास्त्रों में निग्रंथ (दिगम्बर) महामुनि महावीर के बिहार का उल्लेख भी किया मिलता है। 'मझिम निकाय' के 'अपय राजकुमार सुतं से प्रगट है कि वे १. भमवृ., पृ. १०२-११०। २.महाबाग८-२८-१) में है कि "एक बौद्ध भिक्षु ने महात्मा बुद्ध के पास न हो आकर कहा कि भावान ने संयमी पुरुष को बहुत प्रशंसा की है, जिसने पापों को धो डाला है और कयायों को जीत लिया है तथा जो दयालु, विनयी और साहसी है।हे भगवान! यह नानता कई प्रकार से संयम और संतोष दिगम्बरव और दिगम्बर मुनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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