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________________ [८] Powww ३.3vSvac. .. .. 25 . र . .. ०४. | दिगम्बर मुनि के पर्यायवाची नाम दिगम्बर मुनि के लिये जैनशास्त्रों में अनेक शब्द व्यवहत ये मिलते हैं, तथानि चैनेलर साहित्य में एक ही अधिक कामों से उल्लिखित हुये हैं। संक्षेप में उनका साधारण सा उल्लेख कर देना उचित है, जिससे किसी प्रकार की शंका को स्थान न रहे। साधारणतः दिगम्बर मुनि के लिये व्यवहत शब्द निम्न प्रकार देखने को मिलते हैं अकच्छ, अकिञ्चन, अचेलक (अचेलव्रती). अतिथि, अनगारी. अपरिग्रही. अहीक, आर्य, ऋषि, गणी, गुरु, जिनलिंगी, तपस्वी, दिगम्बर, दिग्वास, नान, निश्चेल. निग्रंथ, निरागार, पाणिपात्र, भिक्षक, पहाव्रती, पाहण, मुनि, यति, योगी, वातवसन, विवसन, संयमी (संयत), स्थविर, साधु, सन्यस्थ, श्रमण, क्षपणका संक्षेप में इनका विवरण इस प्रकार है१.अकच्छ'- लंगोटी रहित जैन मुनि। । २.अकिञ्चन-जिनके पास किंचित् मात्र (जरा भी)परिग्रह न हो बह जैन मुनि। 3.अचेलक या अचेलवती- चेल अर्थात वस्त्र रहित साध। इस शब्द का व्यवहार जैन और जेनेतर साहित्य में हुआ मिलता है। मूलचार में कहा है “अच्चेलक लोचो वासट्ठसरीरदा य पडिलिहणं। एसो ह लिंगकप्पो चद् विधो होदिणादव्वो।। ९०८।।" अर्थ-'आचेलक्य अर्थात् कपड़े आदि सब परिग्रह का त्याग, केशलोंच, शरीर संस्कार का अभाव, पोर पोछो-यह चार प्रकार लिंगभेद जानना।' श्वेताम्बर जैन ग्रंथ “आचारांगसूत्र" में भी अचेलक शब्द प्रयुक्त हुआ मिलता "जे अचेले परि चुसिए तस्सणं भिक्खुस्सणो एवभनद" "अचेलए ततो चाई, तं वोसज्ज वत्थमणगारे।" उनके 'ठाणांगसूत्र में हैं "पंचहि ठाणेहि सपणे निग्गथे अचेलए सचेलयाहि निग्गंथीहिं सद्धिं सेवसयाणे नाइक्कपई।" १. वृजेश., पृ. ४। २. hidi ३, पृष्ठ ३२६। ४. आचा.,पृ. १५१। ५. अध्याय १, उद्देश्य १, सूत्र ४.। (44) दिगम्बरत्य और दिगम्बर मुनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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