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सन् १९२७ में जब लखनऊ में दिगम्बर मुनि संघ पहुंचा तो श्री अलफ्रेड जेकबशाँ (Alfread Jackob Shaw) नामक ईसाई विद्वान ने उनके दर्शन किये थे। वह लिखते हैं कि प्राचीन पुस्तकों में सम्मेद शिखर पर दिगम्बर मुनियों के ध्यान करने की बाबत पढ़ा जरूर था लेकिन ऐसे साधुओं को देखने का अवसर अजिताश्रम में ही मिला। वहाँ चार दिगम्बर मुनि ध्यान और तपस्या में लीन थे। आग सी जलती हुई छत पर बिना किसी क्लेश के वह ध्यान कर रहे थे। उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि "हम परमात्मस्वरूप आत्मा के ध्यान में लीन रहते हैं। हमें बाहरी दुनिया की बातों और सुख दुख से क्या मतलब
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यद्यपि मैं पक्का ईसाई हूँ पर तो भी मैं कहूंगा कि इन साधुओं का सम्मान हर सम्प्रदाय के मनुष्यों को करना चाहिये। उन्होने संसार के सभी सम्बन्धों को त्याग दिया है और एकमात्र मोक्ष की साधना में लोन हैं। ""
सचमुच इन विद्वानों का उक्त कथन दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनियों की महिमा का स्वतः द्योतक है। यदि विचारशील पाठक तनिक इस विषय पर गम्भीर विचार करेंगे तो वह भी नग्नता के महत्व और नग्न साधुओं के स्वरूप को मोक्ष प्राप्ति के लिये आवश्यक जान जायेंगे। कविवर वृन्दावन के शब्द स्वतः उनके हृदय से निकल पड़ेंगे
“चतुर नगन मुनि दरसत,
नुति श्रुति करि मन हरसत,
१. JG., XXIII. p. 139.
भगत उमग उर सरसता
दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि
तरल नयन जल बरसत ।। "
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