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श्री जिनप्पास्वापी के सपीप क्षुल्लक के व्रत धारण किये थे। सं. १९६९ में झालरापाटन के महोत्सव के समय उन्होंने दिगम्बर मुनि के महानतों को धारण करके नग्न मुद्रा में सर्वत्र विहार करना प्रारम्भ कर दिया। उनका विहार उत्तर भारत में आगरा तक हुआ प्रतीत होता है।'
सन् १९२१ मे एक अन्य दिगम्बर मुनि श्री आनन्द सागर जी का अस्तित्व उदयपुर (राजपुताना) में मिलता है। श्री ऋषभदेव केशरियाजी के दर्शन करने के लिये वह गये थे; किन्त कर्मचारियों ने उन्हें जाने नहीं दिया था। उस पर उपसर्ग आया जानकर वह ध्यान माढ़कर वहीं बैठ गये थे। इस सत्याग्रह के परिणामस्वरूप राज्य की ओर से उनको दर्शन करने देने की व्यवस्था हुई थी।
किन्तु इनके पहले दक्षिण भारत की ओर से श्री अनन्तकीर्ति जी महाराज का विहार उत्तर भारत को हुआ था। वह आगरा, बनारस आदि शहरों में होते हुए शिखरजी की वंदना को गये थे। आखिर ग्वालियर राज्यान्तर्गत मोरेना स्थान में उनका असामयिक स्वर्गवास पाच शुक्ला पंचमी सं. १९७४ को हुआ था। जब वह ध्यानलीन थे तब किसी भक्त ने उनके पास आग की अंगीठी रख दी थी। उस आग से वह स्थान ही आगमयी हो गया और उसमें उन ध्यानारूढ़ पुनि जी का शरीर दग्ध हो गया। इस उपसर्ग को उन धीर-वीर पुनि जी ने समभावों से सहन किया था। उनका जन्म सं.१९४० के लगभग निल्लीकार (कारकल) में हुआ था। वह मोरेना में संस्कृत और सिद्धान्त का अध्ययन करने की नियत से ठहरे थे; किन्तु अभाग्यवश वह अकाल काल-कवलित हो गये।
'श्री अनन्तकीर्ति जी के अतिरिक्त उस सपय दक्षिण भारत में श्री चन्द्रसागर जी मुनि पणिहली, श्री सनत्कुमार जी मुनि और श्री सिद्धसागर जी मुनि तेरवाल के होने का भी पता चलता है। किन्तु पिछले पाँच-छ: वर्ष में दिगम्बर मुनिमार्ग को विशेष वृद्धि हुई है और इस समय निम्नलिखित संघ विद्यमान है, जिनके मुनिगण का परिचय इस प्रकार है -
(१) श्री शान्तिसागर जी का संघ - यह संघ इस समय उत्तर भारत में बहुत प्रसिद्ध है। इसका कारण यह है कि उत्तर भारत के कतिपय पण्डितगण इस संघ के साथ होकर सारे भारतवर्ष में घुसे हैं। इस संघ ने गत चातुर्मास भारत की राजधानी दिल्ली में व्यतीत किया था। उस समय इस संघ में दिगम्बर मुद्रा को धारण किये हये सात मुनिगण और कई क्षुल्लक-ब्रह्मचारी थे। दिगम्बर साधुओं में श्री शान्तिसागर हो मुख्य हैं। सं. १९२८ में उनका जन्म बेलगाम जिले के ऐनापुर-भोज
१. bid, p. 18-240 २. दिजै., वर्ष १४, अंक ५-६, पृ.७।
३. दिजै., विशेषांक वीर, नि.सं, २४४३। दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि
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