________________
और निग्रंथ (दिगम्बर) तथा श्वतेपट (श्वेताम्बर) संघों के साधुओं के व्यवहार के लिये एक कालवंग नामक ग्राम अर्पण किया था।
उदयगिरि (भेलसा/ विदिशा) में पांचवीं शताब्दि की बनी हुई गुफायें हैं, जिनमें जैन साधु ध्यान किया करते थे। उनमें लेख भी हैं।'
अजन्ता की गुफाओं में दिगम्बर मुनियों का अस्तित्व- अजन्ता (खानदेश) की प्रसिद्ध गुफाओं के पुरातत्व से ईस्वी सातवीं शताब्दि में दिगम्बर जैन मुनियों का अस्तित्व प्रमाणित है। वहाँ की गुफा न. १३ में दिगम्बर मुनियों का संघ चित्रित है। नं. ३३ की गुफा में भी दिगम्बर मूर्तियाँ हैं।
बादामी की गुफा- बादामी (बाजीपुरा) में सन् ६५० ई. को जैन गुफा उस जमाने में दिगम्बर मुनियों के अस्तित्व की घोतक है। उसमें मुनियों के ध्यान करने योग्य स्थान हैं और नग्न मूर्तियाँ अंकित हैं।
चालुक्य राजा विक्रमादित्य के लेख में दिगम्बर मुनि- लक्ष्मेश्वर (धारवाड) की संखवस्ती के शिलालेख से प्रगट है कि संखतीर्थ का उद्वार पश्चिपीय चालुक्यवंशी राजा विक्रमादित्य द्वितीय (शाका ६५६) ने कराया था और जिनपूजा के लिये 'श्री देवेन्द्र भट्टारक के शिष्य मुनि एकदेव के शिष्य जयदेव पंडित को भूमि दान दी थी। इससे विक्रमादित्य का दिगम्बर मुनियों का भक्त होना प्रकट है। वहीं के एक अन्य लेख से मूलसंघ के श्री रामचन्द्राचार्य और श्री विजय देव पंडिताचार्य का पता चलता है। सारांशतः वहाँ उस समय एक उन्नत दिगम्बर जैन संघ विद्यमान था।
एलोरा की गुफाओं में दिगम्बर मुनि- ईस्वी आठवीं शताब्दि की निर्मित एलोरा की जैन गुफायें भी उस समय दिगम्बर मनियों के विहार और धर्म प्रचार को प्रकट करती हैं। वहां की इन्द्रसभा नामक गुफा में जैन मुनियों के ध्यान करने
और उपदेश देने योग्य कई स्थान हैं और उनमें अनेक नग्न पूर्तियाँ अंकित हैं। श्री बाहुबलि गोमट्टस्वामी की भी खड्गासन मूर्ति है। "जगन्नाथ सभा", "छोटा कैलाश" आदि गुफायें भी इसी ढंग की हैं और उनसे तत्कालीन दिगम्बरत्व की प्रधानता का परिचय मिलता है।"
१. मप्राजेस्मा., पृ. ७०। २. बंप्राजैस्मा.. १.५५-५६ ३. [bid.p. 103 ४. lbid.pp. 124-125 ५. fbid.pp. 163–171
दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि
(129)