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________________ श्री उमास्वामी- श्री कुन्दकुन्दाचार्य के उपरान्त श्री उपास्वामी प्रसिद्ध आचार्य थे, प्रो.सा. का यह प्रकट करना निस्सन्देह ठीक है। उनका समय वि.सं.७६ है। गुजरात प्रान्त के गिरिनगर में जब यह मुनिराज विहार कर रहे थे और एक द्वैपायक नामक श्रावक के घर पर उसकी अनुपस्थिति में आहार लेने गये थे, तब वहाँ पर एक अशुद्ध सूत्र देखकर उसे शुद्ध कर आये थे। द्वैपायक ने जब घर आकर यह देखा तो उसने उमास्वामी से "तत्वार्थसूरने की प्रार्थना की थी। तनुसार यह प्रथ रवाना था। उपास्वापी दक्षिण भारत के निवासी और आचार्य कुन्दकुके शिष्य थे, ऐसा उनके "गृद्धपिच्छ' विशेषण से बोध होता है।' श्री समन्तभद्राचार्य- श्री समन्तभद्राचार्य दिगम्बर जैनों में बड़े प्रतिभाशाली नैयायिक और वादी थे। पुनिदशा में उनको भस्मक रोग हो गया, जिसके निवारण के लिये वह काञ्चीपुर के शिवालय में शैव-सन्यासी के वेष में जा रहे थे। वहीं 'स्वयंभू स्रोत' रचकर शिवकोटि राजा को आश्चर्यचकित कर दिया था। परिणामतः वह दिगम्बर मुनि हो गया था। समन्तभद्राचार्य ने सारे भारत में विहार करके दिगम्बर जैन धर्म का डंका बजाया था। उन्होंने प्रायश्चित्त लेकर पुनः मुनिवेष और फिर आचार्य पद धारण किया था। उनकी ग्रंथ रचनायें जैन धर्म के लिए बड़े पहल्व को श्री पूज्यपादाचार्य- कर्नाटक देश के कोलंगाल नामक गाँव में एक ब्राह्मण माधवभट्ट विक्रम की चौथी शताब्दि में रहता था। उन्हीं के भाग्यवान पुत्र श्री पूज्यपादाचार्य थे। उनका दीक्षा नाय श्री देवन्द था। नाना देशों में विहार करके उन्होंने धपोपदेश दिया था, जिसके प्रभाव से सैकड़ों प्रसिद्ध पुरुष उनके शिष्य हुये थे। गंगवंशी दुविनीत राजा उनका मुख्य शिष्य था। "जैनन्द्र व्याकरण", "शब्दावतार" आदि उनकी श्रेष्ठ रचनायें हैं। श्री वादीभसिंह- यतिवर श्री वादीभसिंह श्री पुष्पसेन मुनि के शिष्य थे। उनका गृहस्थ दशा का नाम 'ओढ्यदेव' था. जिससे उनका दक्षिण देशवासी होना स्पष्ट है। उन्होंने सातवीं शती में “क्षत्रचूड़ामणि", "गचिन्तामणि" आदि ग्रन्थों को रचना की थी। १. मजैइ. पृ.४४। • २. Ibid.p.45A. ३. Itbid.p.4th. ४. Tbid.p.47. (116) दिगम्बरत्य और दिगम्बर मुनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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