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“यस्यप्रांशुनखांशुजाल-विसरद्धारान्तराविर्भव, त्पादाम्भोजरजः पिशंगमुकटप्रत्यारत्नदुनिः। संस्मर्ता स्वममोघवर्षनृपतिः पूतो हमद्येत्यलं,
स श्रीमाझिसेनपूज्यभगवत्पादो जगन्मंगलम्।।* अर्थात्- "जिन श्री जिनसेन के देदीप्यमान नखों के किरण समूह से फैलती हुई धारा बहती थी और उनके भीतर जो उनके चरण कमल की शोभा को धारण करते थे उनकी रज से जब राजा अमोघवर्ष के मुकुट के ऊपर लगे हुए रत्नों की कांति पीली पड़ जाती थी तब वह राजा अमोघवर्ष आफ्को पवित्र मानता था और अपनी उसी अवस्था का सदा स्मरण किया करता था, ऐसे श्रीमान् पूज्यपाद भगवान् श्री जिनसेनाचार्य सदा संसार का मंगल करें।
__ अमोघवर्ष के राज्य काल में एकान्त पक्ष का नाश होकर स्याद्वाद मत की विशेष उनति हुई थी। इसीलिये दिगम्बराचार्य श्री महावीर "गणितसारसंग्रह" में उनके राज्य को वृद्धि की भावना करते हैं।' किन्तु इन राजा के बाद राष्ट्रकूट राज्य को शक्ति छिन्न-भिन्न होने लगी थी। यह बात गंगवाड़ी के जैन धर्मानुयायी गंगराजा नरसिंह को सहन नहीं हुई। उन्होंने तत्कालीन राठौर राजा की सहायता की थी और राठौर राजा इन्द्र चतुर्थ को पुनः राज्य सिंहासन पर बैठाया था। राजा इन्द्र दिगम्बर जैन धर्म का अन्यायी था और उसने सल्लेखना व्रत धारण किया था।' गंगराजा और सेनापति चामुण्डराय
इस समय गंगवाडी के गंगराजाओं ने जैनोत्कर्ष के लिये खास प्रयत्न किया था। रायपल्ल सत्यवाक्य और उनके पूर्वज मारसिंह के मन्त्री और सेनापति दिगम्बर जैन धर्मानुयायी वीरपार्तण्डराजा चामुण्डराय थे। इस राजवंश की राजकुमारी पनिवव्वेने आर्यिका के व्रत धारण किये थे। श्री अजितसेनाचार्य और नेमिचन्द्राचार्य इन राजाओं के गुरु थे। चापुण्डराय जी के कारण इन राजाओं द्वारा जैन धर्म की विशेष उन्नति हई थी। दिगम्बर मनियों का सर्वत्र आनन्दपई विहार होता था। कलचूरि वंश के राजा दिगम्बर मुनियों के बड़े संरक्षक थे
किन्तु गंगों का साहाय्य पाकर भी राष्ट्रकूट वंश अधिक टिक न सका और पश्चिमीय चालुक्य प्रधानता पा गये। किन्तु यह भी अधिक समय तक राज्य न कर सके। उनको कलचूरियों ने हरा दिया। कलचूरी वंश के राजा जैन धर्म के परम भक्त थे। इनमें बिजलराजा प्रसिद्ध और जैन धर्मानुयायी था। इसी राजा के समय में
१. "विध्वस्तैकान्तपक्षस्य स्याद्वाद्वन्यायवादिनः।
देवस्य नृपतुङ्गस्य वर्द्धतां तस्य शासनं ।।६।।" २. SSI.I.Pt.L.p.112 ३. मजैस्मा , पृ. १५०।
४. वीर,वर्ष ७, अंक १-२ देखो। (110)
दिगम्बाव और दिगम्बर मुनि