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दि० जैन व्रतोद्यापन संग्रह । [ ५१ प्रमद, समद, प्रकाम, कामद, भवहर, मनोहर, मनोभव, मार, काम, रुद्र, अङ्गजाश्चति, अनागत एकादशरुद्राश्च वः प्रीयतां २ ।
असुर, नाग, सुपर्ण, द्विपर्ण, द्विपोदधि स्तनित, विद्यत, अग्नि,वात दिवकुमाराश्चेति दशविधभवनेन्द्राश्च वः प्रीयंतां२।
चमर, वैरोचन, धरण, भूतनाद, वेणुदेव, वेणुधारी, पूर्णवशिष्ठ, जलप्रभ, जललांत,घोष, महाघोष, हरिषभ, हरिकांत अमितगति, अमितवाहन, अग्निशिखि, अग्निमाणव, वलम्ब, प्रलम्ब प्रभंजनाश्चेति विंशतिभवनेन्द्राश्च वः प्रीयंतां २।
किन्नर, किंपुरुष गरुड, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत, पिशाचाश्चेति अष्टविधव्यन्तरेन्द्राश्च वः प्रीयंतां २ ।
किन्नर, किंपुरुष, तत्पुरुष, महापुरुष, महाकाय, अतिकाय, गीतरति, गीतयशः, पूर्णभद्र, मणिभद्र, भीम, महाभीम, सुरूप, प्रतिरूप काल महाकालाभिधानाचति षोडश व्यन्तरेन्द्राश्च व : प्रीयंतां २।
चन्द्रादित्यग्रह नक्षत्र प्रकीर्णक तारकाश्चेति पचविध ज्योतिषकेन्द्राश्च वः प्रीयतां २ ।
सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेंद्र, ब्रह्म, ब्रह्मोतर, लातव; कापिष्ठ, शुक्र, महाशुक्र, शतार, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण अच्युतेन्द्राश्चति षोडशकल्पेन्द्राश्च वः प्रीयंतां२
हिट्ठिमहिटिम हिटिममझिझम हिट्ठिमोपरिम मझिझमहिटिम मझिझममझिमोपरिमउपरिमहिटिम उपरिममझिम उपरिमो