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दि० जैन व्रतोद्यापन संग्रह |
ॐ ह्रीं सूर्यादिनवग्रह देवेभ्योश्वरुं समर्पयामि ||५|| कनक कांति विकाशित दीपके:, हृदयतामस विस्तरवारकः । मणिमये रिव विश्वप्रकाशकै, दिविसदो नवसंख्य ग्रहान्यजे || ॐ ह्रीं सूर्यादिनवग्रहदेवेभ्यो दीपम समर्पयामि ||६|| अगुरुचन्दन मिश्रित धूपकैः,
सकलकर्म विनाशन दक्षकैः ।
सुरभितोषित षट्पद संचयै, दिविसदो नवसंख्य ग्रहान्यजे || ॐ ह्रीं सूर्यादिनवग्रह देवेभ्यो धूपम् समर्पयामि ||७ पनस दाडिम पक्त्र कपित्थके, मधुर मोचकआ सुसत्फलैः ।
कनक वर्ण सुधारस पूरके, दिविसदो नवसंख्य ग्रहान्यजे || ॐ ह्रीं सूर्यादिनवग्रहदेवेभ्यो फलम् समर्पयामि ||४|| तोटक छन्दः ।
जलगन्धसदक्षतपुष्पभरै, श्वरुदीपसुधूपमनोज्ञ फलं ।
वसुद्रव्यविनिर्मितकं प्रयजे,
कविप्रेम सुकल्पितम महम् ||
ॐ ह्रीं सूर्यादिनवग्रहदेवेभ्योऽयं समर्पयामि ॥ ९॥