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________________ दि. जैन प्रतोद्यापन संग्रह । [ २९३ सकल दुःख विनाशन दक्षकै. दिविसदो नवसंख्य ग्रहान्यजे ॥ ॐ ह्रीं सूर्यादिनवग्रहदेवेभ्यो जलं समर्पयामि ॥१॥ अगुरु मिश्रित कुकुम चंदनै, रविज ताप विनाशन दक्षकैः । मलयपङ्क महोत्तम शीतने, .. दिविसदो नवसंख्य ग्रहान्यजे ॥ ॐ ह्रीं सूर्यादिनवग्रहदेवेभ्यो चन्दनम् समर्पयामि ॥२॥ सकलबूस विवर्जित तन्दुले, र्धवलमौक्तिक वर्ण समानकैः ।। सुरभिवास सुवासित दक्षक, दिविसदो नवसंख्य ग्रहान्यजे ॥ ॐ ह्रीं सूर्यादिनवग्रहदेवेभ्योऽक्षतान समर्पयामि ।।३।। सरसिजात मनोहर पुष्पक, बंकल केतकि चम्पकमोगरैः ॥ भ्रमर गुंजित चोरुसुवासकै, दिविसदो नवसंख्य ग्रहान्यजे ।। ॐ ह्रीं सूर्यादिनवग्रहदेवेभ्यो पुष्पम् समर्पयामि ॥४॥ घृत सुपक्क सुमोदकखज्जकै, वटक मण्डकभक्त सुनिर्मगैः । सुभग हव्य पयोदधिसंयुतै, दिविसदो नवसंख्य ग्रहान्यजे ॥
SR No.090154
Book TitleDigambar Jain Vratoddyapan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Surchand Doshi
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1986
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size20 MB
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