________________
दि. जैन व्रतोद्यापन संग्रह ।
[२७० केसभरि कुसुम भर सिर ढोलंतिया । वयण छूणिइन्दु छमकंति विहसंहतिया ॥ कमलदलणयणजिण बिंब पेखन्तिया । जि०॥
गाथा।
गंदीसरम्मि दीवे बावण जिणालयासु पडिमाणं । अट्ठाई वरपव्वे इंदु आरतिओ कुणइ ॥ ६ ॥ इन्दु आरतियो कुणइ जिणमन्दिरं । रयणमणिकिरणकमलेहिं वर सुन्दरं ॥६॥ गीउ गाइयन्ति पञ्चन्ति वरणारया । तूर वज्जन्ति णाणाविंह पाडया ॥७॥
गाथा ।
एक्कम मिहजिणहरे चौ चौ सोलह वावीओ । जोयण लक्खपमाणं अट्टमणंदीसरे दीवे ॥८॥
अट्टमं दीव णंदीसरं भासुरं । चैत्य चैत्यालयं वन्दि अमरासुरं॥ देव देवी जहां धम्म सन्तोसिया। पश्चम गीय गायन्ति रस पोसिया ॥९॥
गाथा ।
दिव्वे हिं खीरनीर-हिं गन्धे हिंसुम मालाई । सव्वसुरलोप सहिये मा भारम्भषे इन्दु ॥१०॥