________________
___२७६ ] दि० जेन व्रतोद्यापन संग्रह । सकलकुसुमवल्लीपुष्कलावर्तमेघो ।
दुरिततिमिरभानु:कल्पवृक्षोपमानः ॥ भवजलनिधिपोतः सर्वसम्पत्तिहेतुः।। स भवतु सततं वः श्रेयसे पाच नाथः ॥१॥
इत्याशीर्वादः।
अथ जयमाला।
कंपिला णयरि मंडस्से, विमलस्से विमलणाणस्से ।। आरतिवर समये णच्चति, अमरमणीओ ॥१॥
.अमर रमणीउ णचंति जिणमन्दिरं । विविह वर तूर तालेहिं वग्गिनूपुरं ॥ जडिय बहु रयण चोमीकरं पत्तियं । जिणन्द आरत्तियं जोइयं सुन्दर ।
मोतियंदाम । रुणझुणंकारेणउरधचलणुत्तिय । कमलदल णयण जिण विम्ब पेखन्तिया ॥ जिणन्द आरत्तिय जोइय सुन्दरम् ॥३॥ इन्दु धरणेंदु जलदु वो सहतिया।
मिलियसुर असुरघण रास खेलन्तिया ॥ केचि सिर चमर जिणबिम्ब ढोलंतिया ॥ जि० ॥४॥