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________________ दि० जेन व्रतोद्यापन संग्रह । [ २५१ ढोल बहुदुन्दुभीय णाद बहु सव्वए । जण सु घण गज्जणं मोरमद णच्चए ।इन्दु० ३०॥ हाव भाव कला णयण सु विसालए । भमइ वर भमरी देांति कर तालए ॥इन्दु० ३१॥ राग सारंग तह देव गन्धारए । पंचमो भैरव राग मल्हारए ॥इन्दु० ३२॥ कुणइ कल्लाण विलास आसाउरी । हरीइ बहु पाव पुरुज्जत अन्ते उरी ॥ इन्दु० ३३॥ कुणइ ओरत्तियं इन्दु जिणमन्दिरे। सयल वर संघ आणन्द मंगल करे ।इन्दु० ३४।। घत्ता । सिरि अणन्त जिणेसर दुरिय तिमिर हर भवियण जण कल्लाणकर । सुरि विजयमुणिंदो तिहुयण चन्दो नारायण ब्रह्म यजति वर ॥ ___ॐ ह्रीं अनन्तव्रतोद्यापन जयमाला पूर्णाघ । घण्टा तोरण दाम दर्पण महाश्री चामराणां चयाः । सद्भगारकतारतालकलशस्फर्यध्वजानां गणाः ॥ येषां ते विलसंति नित्य महसां श्वेतानपत्रत्रयाः । श्रीमन्तो वृषभादयो जिनवाला बुतु मे मंगलम् ।। इत्याशीर्वादः ।
SR No.090154
Book TitleDigambar Jain Vratoddyapan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Surchand Doshi
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1986
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size20 MB
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