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२५० ] दि० जैन व्रतोद्यापन संग्रह ।
जण सुहीरावली क्षीर मचकुन्दय । क्षीर जलणिहि सम कमल वरकंदयं ॥इन्दु० १९॥ वंदतय संणिहं छत्ततय सुन्दरम् । प्रातिहार्याष्टकं सयल मंगलकरम् ।।इन्दु० २०॥ पंच वर वरण धज भेय लहकंतयम् । रयण वर तोरणं धूपघटमालयम् ॥इन्दु० २१॥ कणयमणि किंकिणी सुख झणकारयं । तोरया घंटया रचिय विज्ञानयं ।इन्दु० २२॥ दीपवरमालया सुहग मंदारया । भमर झंकारया कणयमणि जालया ॥इन्द० २३॥ व्यन्तरी खेचरी किन्नरीय भूचरी । सुहग पुरन्दरी स्वर्ग देवामरी इन्दु० २४॥ तत्ताथइ तत्ताथइ तत्ताथइय थोगिणी । णचए अच्छरा हंस गय गामिणी । इन्द० २५।। वज्जये घुघरा धमक धमकारए । पयकमलणे उरं ठमक चमकारए । इन्द० २६।। छमकछम पाय झंझरीय झमकारए । कहिय तह मेखला वर खलकारए ।इन्द० २७। वीणा वज्जति छलछपल कंसालए । भेरी गज्जति अडयाल बहुतालए ॥इन्द० २८॥ धपमय धपमय दो दो दों वज्जए । जण तु पण जप मुकाम पर मजबए ।इन्दु.२९॥