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दि. जैन व्रतोबापन संग्रह।
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अथ जयमाला। चतुदहवरतिथि हो, परम अतिथि हो,
__धम्मह कारण सुमण धरी । भवियण जण रंजण कम्म विभंजण, काम विगंजण जिणंउ धरी ॥
छहढालाकी चालमें । प्रथम तिथि समकित साधो, ए संसार अपार अगाधो । मनमें अरहन्त देव आराधो, भमतां भमतां मानव भव लाधो । बीजे धर्म द्विधा जिन भाख्यो, अनागार सागरह दाख्यो । मनमें अरहन्त देव आराधो, भमतां भमतां मानव भव लाधो ।। त्रीजे दसण णाण चरित्र, पूजो अष्ट प्रकार पवित्र |मन०॥ चोथे वेद चतुष्टय जाणी, पूजो निम्मल भवियण प्राणी ।मन०॥ पूजो पांचम पंचपरमेष्ट, टाले जनम जनमनां कष्ट ।मन०॥ छ? छद्रव्य कह्या जिनदेवा, पूजा नित्य करो बहुसेवा । मन०। सेवो संजम सातमे सात, सु सामायिक करो परभात ।मन०॥ शुभ कर्म दहन पूजा कीजे, आठमे आठ कर्म हणीजे मन०॥ नवमें नव नय अथें गम्भीरा, मनमें जे धरसे तेह धीरा मन०॥ दशमी दश लाक्षणीक पूजो, उत्तम क्षमयादि गुण बुझो ।मन.। अगीयारसे अङ्ग अग्यार, पूजो पाप तणो परिहार मन०॥ बोरे व्रत बारसें पालो, सुधी श्रावकाचार सम्भालो