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दि० जैन व्रतोद्यापन संग्रह 1
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हुयण जस अभंग, पुणेण सुणर लहइ सुवण संग ॥९॥ पुणेण णियर गइ विलय जाइ, पुणेण तिरिय गइ दूर धाय । पुणेण कुसत्तुह हव मित्त, पुणेण सगुरुजण धरइ चित | १० |
घत्ता ।
चउदह वर रयणा अणुछयमयणा, पुणय तु सिंदणर विभवा । सिरिविजयसूरिसा मुणिजणइसा,
सिस्स नरायण कयसु तवा ॥ ॐ ह्रीं चतुर्दशरत्नाधिपतिचक्रवर्तिभ्यो महाघं । सेनापतिप्रमुख रत्न महाप्रभावावाधिपा विमलबुद्धिमहस्वभावाः ॥ संपूजक प्रमुख भव्यजनान्सु पूज्याः ॥ कीर्ति सुबुद्धिविभव सततम् दिशन्तु ॥ इत्याशीर्वादः ।
छप्पा ।
सेनापति वर रयणय पति गृहपति वरख्यात ह । गयवर हय वर रयण युवति सुचक्र विभातह || चर्म नाम मणि रयण काकिणी फुनि रथण पुरोधह । छत्र खड्ग फुनिरयण दण्ड फुनि रयण प्रबोध ||
एह चउदह रयण घर, चक्रवर्ति पातक हरो । नारायण ब्रह्मचारी कहे, सकल संघ मँगलकरो ॥ इति चतुर्दश रत्नाधिपतिपूर्ण' समोरी