________________
२३२ ]
दि० जैन व्रतोद्यापन संग्रह ।
अथ जयमाला।
इह पुण्य पवित्ता गुणगणचित्ता, छित्तापिछा मइणिपुणा । चउदह रयणता, विज्जयपत्ता चकवट्टि पयपत्तगुणा । पुणेण रयणपइपद लहंति, पुणेण सु णरयइ गुग कहति । पुणण सणाणइ रयण सार, पुणण ठहइ गुणगण भंडार ।। पुणेण सुणरसुर णमइ सिस्स, पुणेण सुगयवर भमइ दीस । पुणेण हसारवीहय करंति, पुणेण सु जुबइ ग्यण वरंति ॥२॥ पुणेण सुचकह करइ सेव, पुणेण सुचम्मह र यग हेव । पुणेण सुरहसम मणि विशाल, पुणेणसु काकिणी गुणहमाल ३ पुणेण पुरोधह करइ सेव, पुणेण सुछत्तह धरड़ देव । पुणेण असिय वर रयण पत्ति, पुणेण सुदण्ड रयण पसत्ति ॥४॥ पुणेण सुजलणिहि थल हवन्ति, पुणेण अगणिभयसुर अवन्ति । पुणेण कुरोग दलिद्द णास, पुणण धरणपई पय विलास ॥५॥ पुणेण सुकुल णर लहइ जम्म, पुणेण सु जिणवर लहइ धम्म । पण सु मुणिवर खवइ कम्म, पुणेण सुभोयह भूमि सुसम्म ॥६॥ पुणेण सु अगणिय लच्छि सार, पुणेण सुकुलपइ चतुर णार | पुणेण हन्ति सुपुत्त पुत्त, पणेण पराभव इणहि भूत्त ॥७॥ पुणेण कुड़ायणी ण रहे पास, पुणेण कु साइणी हवइ दास । पुणेण कुदेव पिसाय जाय, पुणेण लहइ गरपइ पसाय ॥८॥ पुणेण सुणर लहइ सुहग सग्ग, पुणोण सुलहइ णर सु अपवग्ग । पुणेण सुति -