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________________ दि० जैन व्रतोद्यापन संग्रह | [ २२३ शिखरिप्रोत्थितां रम्यां रक्तोंदां श्रीजिनां कितां । सलि० ॥ ॐ ह्रीं जिनबिम्बे समन्वित रक्तोदानद्य जलादिकं ॥ १४ ॥ गंगादिवाहिनि सुमध्य जिनेन्द्रबिम्बार्चा प्रवरभक्तिभरेण युक्ताः || अर्घेण सज्जलसुचन्दनपुष्पचारुनैवैद्यदीपवरधूपफलैः कृतेन ॥ ॐ ह्रीं गंगादिचतुर्द शनद्य महाघं । अथ जयमाला । णिम्मलवर सरिया गुणगण भरिया, चउदह णिम्मल जल भरिया । कुलाचल घरिया द्रह उद्धरिया, जिण अणुसरिया मल हरिया, ॥१॥ भरह सरासण उवमय जाणो, गंगा सिन्धु नदीय वखाणो । तिहपण श्रीजिनवर सुविशाल, ते पूजो भविषण गुणमाल ||२|| जह ह भोय भूमि गुण भरिया. रोहिद रोहिदासा दोह सरिया | तिहांपण श्रीजिनवर सु विशाल, ते पूजो भवियण गुणमाल ॥३॥ मध्यम भोथ धरा अणुसरिआ, हरिय हरिकांता मणी हरिया | तिहां० ॥४॥
SR No.090154
Book TitleDigambar Jain Vratoddyapan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Surchand Doshi
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1986
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size20 MB
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