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दि० जैन व्रतोद्यापन संग्रह |
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शिखरिप्रोत्थितां रम्यां रक्तोंदां श्रीजिनां कितां । सलि० ॥ ॐ ह्रीं जिनबिम्बे समन्वित रक्तोदानद्य जलादिकं ॥ १४ ॥ गंगादिवाहिनि सुमध्य जिनेन्द्रबिम्बार्चा प्रवरभक्तिभरेण युक्ताः ||
अर्घेण सज्जलसुचन्दनपुष्पचारुनैवैद्यदीपवरधूपफलैः कृतेन ॥ ॐ ह्रीं गंगादिचतुर्द शनद्य महाघं ।
अथ जयमाला ।
णिम्मलवर सरिया गुणगण भरिया, चउदह णिम्मल जल भरिया । कुलाचल घरिया द्रह उद्धरिया,
जिण अणुसरिया मल हरिया, ॥१॥ भरह सरासण उवमय जाणो,
गंगा सिन्धु नदीय वखाणो । तिहपण श्रीजिनवर सुविशाल,
ते पूजो भविषण गुणमाल ||२|| जह ह भोय भूमि गुण भरिया.
रोहिद रोहिदासा दोह सरिया | तिहांपण श्रीजिनवर सु विशाल,
ते पूजो भवियण गुणमाल ॥३॥ मध्यम भोथ धरा अणुसरिआ,
हरिय हरिकांता मणी हरिया | तिहां० ॥४॥