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दि० जैन व्रतोद्यापन संग्रह । अथ जयमाला।
घत्ता। कमलाननरुचिरा गणगणानिचिता नीलोत्पलदलनयनवरा। शुभमतिवर विभवा रतिपति सभवा स्तेजयन्तु कुलकरपुरुषाः ॥१॥ प्रतिश्रुति कुलकर गुणगण निधान, शुभ भोगभवांकृत परम मान । शुभ तारकिताभ्र समायें भीत, विनिवारण सन्मति सरल चित्त ॥२॥ वरभोग धराज मनुष्य लोक, कृत भाबुक गत मल विगत शोक । कृत भोग धराज सु भव्यकार, वर निर्मल भाबुक नाम धार ।३। सकलार्य महानग सीमकार, जगती जसु सीम कृत नीहार वर वृक्ष लतोकृत सीम धार, धृत सीमन्धर वर नाम भार ॥४। वर वाहन दर्शित विभव सार, विमलादि सु वाहन नाम धार । वर पुत्रानन लोकन सुदेश, विधि दानसु चक्षुष्मदभिधेश ॥५॥ सुयशस्त्रदिति प्रथिताभिधान, परमार्यानुति स्तुति घृत वितान । रमयन सु प्रजावर चंद्रकेण, स्वभिचंद्र इति श्रुति मायतेन ॥६॥ वर चंद्राभक इति नाम धार, सकलामल विधु सम कांतिभार । सुर राज समान मरु सु देव, चिरजीवन सन्ततिकृत सु सेव ॥७॥ सु प्रसेन विजिद्वर नाम धार, कृत बालक गर्भ पलापहार ।