________________
दि० जैन व्रतोद्यापन संग्रह |
अथ जयमाला ।
सिरि णिवरभक्ति सुह सम्पत्ति संसारांबुद्धितरणी । जउपाव विणासणि सुगति णिवासिणि बहु सुहरासिणि भयहरणी || १ || जिणवर भक्ति करइ सविभोग, जिणवर भक्ति हरइ सवि रोग, जिणवर भक्ति करइ सविकाज, जिणवर भक्ति जहर शिवराज || २ || जिणवर भक्ति हरइ कुल दुःख, जिणवर भक्ति हरइ महा सुख । जिणवर भक्ति विणासइ कम्म, जिणवर भक्ति करइ जस धम्म ||३|| जिणवर भक्ति कुविघ्न विणासण, जिणवर भक्ति पाप पयासण | जिणवर भक्ति सु कीर्ति करइ, जिणवर भक्ति कुदुख हरह || ४ || जिणवर भक्ति सुमोख सहाय, जिणवर भक्ति णमइ सुर राय । जिणवर भक्ति जु परम णाण, जिणवर भक्ति तिलोय माण ||५||
१३२ ]
घत्ता ।
इति सिरि जिणभक्ति कम्म,
विच्छत्ति शिवसंपत्ति सुगईकरं ।
सिरि भूषणभासि सुगुन,
पयासि बंभणाण भवतापहरं ॥
ॐ ह्रीं अर्हद्भक्तये पूर्णाघं० ।