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दि. जैन व्रतोद्यापन संग्रह ।
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अथ जयमाला। आइ जिनेसर पदनवि कहिया, वैयाविच्चि तिलोय महिया । अमलगुण कलि गणगह भरिया, बाहुबलि मण चक्रम करिया ॥ १॥ वैयाविच्चि मुणिसर किज्जइ, नैयाविच्चि सहाय बलिज्जा । नैयाविचि परम जस पावइ, नैयाविच्चि गिरोस सुवज्जइ ॥२।। गैयाविचि दलिद्द णिवारइ, नैयाविच्चि भवोदधि तारइ । नया विचि अमरपद विजइ, नैयाविच्चि सदा फल लिज्जइ ॥३॥ वैयाविच्चि करइ जन सेवा, याविचि पसण जु देवा नेयाविच्चि कुकम्म विणासइ,
याविच्चि सुभव पयासइ ॥४॥ तैयाविच्चि गणेदसु कहिया, नैयाविचि मुणिंद सु महिया। नैयाविचि महा तब सिद्धि, चैयाविच्चि अचलपद रिद्धि ॥५॥
घत्ता । दिइ नैयाविच्चि गुण सम्पत्ति,
सिरिभूषण मुणिणा कहिया । जिनवर मुख जाता भव भय त्राता,
बम्भणाण मुणिणा कहिया ।। ॐ ह्रीं वैयावृत्तिकरणाय पूर्णाघ० ।