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________________ ११८ ] दि. जैन व्रतोद्यापन संग्रह । अथ जयमाला। सिरि तित्थेसर भव्यदिणेसर रिसहेसर जिण प्रगट कियं । वर बाहुबली भरतेसर सुन्दर रिसहसेण मण शुद्धलियं ॥ वैरागेण सफल होई जम्म नैरागेण हवइ पुणकम्म । वैरागेण तरइ सृति सेत नैराग्यं भव दुह छन्दण मित्त ।। गैराग्य मोह माया हरन्त, नैराग्य अणुबय सुह धरन्त ॥ नैरागेण उपजई सिद्धि, नैरागेण लहई शिव रिद्धि । वैरागेण णमई णर पाय, नैरागेण कुपाप पलाय । नैरागेण सकल होइ सिद्धि, वैरागेण लहइ शिव रिद्धि ॥ गैरागेण लहइ सुख खाण, शुद्ध नैराग्य दिजइ माण। नैराग्ये भव सफल करज्जइ, पुण रवि आवागमण न कीजइ ॥ घत्ता । नैराग्यमुर्णिदह दुःख निकन्दह भवभयफन्दह भयहरणं । णिखिलागमनायक शिवपददायक भव्यजनस्स सदा सरणं ॥ ॐ ह्रीं संवेगभावनायै पूर्णांर्घ० ।।
SR No.090154
Book TitleDigambar Jain Vratoddyapan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Surchand Doshi
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1986
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size20 MB
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