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परिचय आचार्य विमलसागरजी
आपका जन्म आसोज कृष्णा सप्तमी विक्रम संवत् १९७२ में कोसमां उत्तर प्रदेश में हुआ। माता का नाम कटोरी बाई एवं पिता का नाम बिहारीलाल था । गृहस्थावस्था में नेमीचन्द्र के नाम से जानते थे ।
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आपने शिक्षा शास्त्री पर्यंत प्राप्त की। आपके ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम अत्यधिक तो था ही साथ ही दूसरों को अध्यापन के कार्य से ज्ञान की वृद्धि हुई । आपका पाण्डित्य और आयुर्वेद शास्त्र में भी अच्छा ज्ञान रहा । इसलिए आप पंडितजी, वैद्यजी की उपाधि से प्रख्यात हो गये। घर में रहकर भी दया, दान, इति परोपकार वृत्ति आदि धार्मिक कार्यों में निष्टावान थे। आचार्य आदि अंकलीकर एवं उनके पट्टाधीश आचार्य महावीरकीर्ति जी के सन्निकट रहने के कारण आपका जीवन वैराग्य की और मुड़ गया।
इस प्रकार आपने अपने सम्पूर्ण व्रतों को गुरुदेव परम्पराचार्य महावीरकीर्ति जी से ग्रहण किया । निर्ग्रन्थ दीक्षा संवत् २०१० में सोनागिरि में हुई। आपका नामकरण मुनि विमलसागर रखा गया। अपनी उज्ज्वल साधना के कारण टूंडला में आचार्य पद को प्राप्त हुए। आपके उपदेश से प्रभावित होकर अनेक भव्य प्राणियों ने ब्रह्मचारी, क्षुल्लक, क्षुल्लिका, मुनि, आर्यिका के व्रत ग्रहण किये। इनमें से योग्य मुनियों को आचार्य पद प्रदान किये।
आपके द्वारा रचनात्मक कार्य अनेक हुए। जिनवाणी का वैभव नामक ग्रन्थ ऐलक अवस्था में, आचार्य आदिसागर अंकलीकर नामक ग्रन्थ आचार्य पद में तथा अन्य साहित्य भी लिपिबद्ध किया गया । यह भव्य प्राणियों को बोध को प्राप्त कराने में श्रेष्ठ ग्रन्थ हैं। आपने अपने जीवन काल के समय में ही महत्वपूर्ण
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