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________________ PUASACALACHEREREKER SEGALAGA! • सम्यग्दर्शन का लक्षण HERSHERELE सांग मूढ़तामद रहित, भक्ति सद्देव गुरु शास्त्र | सात तत्त्व श्रद्धान से, होता समकित भ्रात ॥ ५ ॥ अर्थ- समीचीन सच्चे देव (आप्त- सर्वज्ञ), निर्ग्रन्थ, वीतरागी, दिगम्बर गुरु और १८ दोष रहित सर्वज्ञ, वीतरागी, हितोपदेशी द्वारा उपदिष्ट पूर्वापर विरोध रहित शास्त्र - आगम का तथा सात तत्त्वों का अष्ट अंग सहित एवं तीन मूढ़ता, आठ मद, छः अनायतन, आठ शंकादि दोषों से रहित श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। अतः हमें "तत्त्वश्रद्धाणं सम्यग्दर्शनं" परिभाषा ही सही नहीं इसीलिए श्री उमास्वामी आचार्य श्री ने "तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनं" कहा के है। जिस क्षण सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है, उसी काल से उस श्रद्धालु जीवन की दिशा ही बदल जाती है ॥ ५ ॥ • सम्यतन के दोष तीन मूढ़ता आठ मद, षट् अनायतन जान । वसु शंकादि पच्चीस इम, समकित दोष पिछान ॥ ६ ॥ अर्थ - तीन मूढ़ता, आठ मद, छः अनायतन, आठ शंका- कांक्षा आदि दोष २५ हैं । इनके द्वारा सम्यग्दर्शन मलिन होता है ॥ ६ ॥ ५. श्रद्धानं परमार्थानामाप्तागम तपोभृतां । त्रिमूढ़ापोढमष्टाक्रं सम्यग्दर्शनमस्मयम् ॥ रत्नकरण्ड श्रा. ॥ अर्थ- सच्चे देव शास्त्र गुरू का तीन मूढ़ता रहित आठ अंग सहित श्रद्धान होना सम्यग्दर्शन है। तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनं । जीवाजीवासवबंधस्वर निर्जरामोक्षास्तत्त्वं । (तत्त्वार्थ सूत्र ) ६. मूढत्रयं मदश्चाष्टो तथानायतनानि षट् । अष्टी शंकादयश्चेति दृग्दोषाः पंचविंशतिः ॥ ... ZAYREREREKEKELUASACREAGAVAZABAEACASASAEREARACÉGALÉ धर्मानन्द श्रावकाचार ८२ i
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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