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________________ XANUKAI VANAALKATRĀDĀTAT turunaratiu शिवपथ - ३११ श्लोकों का यह सुंदर समायोजन संस्कृत निबद्ध है। इसके मूल लेखक आचार्य आदिसागरजी अंकलीकर है। ग्रंथ का लेखन वि. सं. २००० में पूर्ण हुआ था। तथा मगसिर कृष्णा दसमी २००४ में आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी द्वारा अनूदित हुआ हिंदी भाषा में। कृति में श्रावकाचार, नीतिन्याय, लोक व्यवहार ताश धर्म आदि की नर्चा विशेष रूप से ली गई है। ___चतुर्विंशति स्तोत्र - यह २५-२५ श्लोकों के २५ पाठों से युक्त २२५ श्लोकों की सुंदर रचना है। इसमें चौबीस तीर्थंकरों की वंदना करते हुए न्याय एवं दर्शन की भी सुंदर चर्चा की गई है। ग्रंथ के कर्ता आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी माने जा रहे हैं। इसकी हिंदी टीका गणिनी आर्यिका विजयमति जी ने की है। जो अच्छी बन पड़ी है। वचनामृत (Words of Nectar) - इस लघुकाय पुस्तिका में आचार्य श्री आदिसागरजी (अंकलीकर) के वचनामृतों का संकलन हुआ है। कालान्तर में इसका अंग्रेजी अनुवाद भी हुआ है । आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी को अंग्रेजी का कितना अच्छा ज्ञान था वह इस कृति को पढ़ने से मालूम पड़ जायेगा। ___सभी मोक्षमार्ग के साधक जिनवाणी मार्गानुसारी ग्रंथों का स्वाध्याय करते हुए आत्मोन्नति के मार्ग पर बढ़ें, ऐसी भावना के साथ गुरू चरणों में प्रणाम करता हुआ विराम लेता हूँ। xesaesamanarasRECENTERNAeracraniKIRAMASKAsiaSIMARK धमानन्द्र श्रावकाचार-~३३५
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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