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________________ 37KALVARUBANSTALTUUSTRATARRERAKARARAA • सल्लेखना के अतिचार-- जीवित मरन की आसमन याद करन परिवार। सुख चिंतन पर सुख चहन, सल्लेखन अधिकार ॥ १६ ॥ अर्थ - जीने-मरने की अभिलाषा, पुत्र-मित्रादिक का स्मरण, सुखों का चिंतवन करना पर भव में स्वर्गादिक सुखों की वांछा करना इस प्रकार ये पाँच अतिचार सल्लेखना ले हैं। भावार्थ - १. जिसने मरने के पूर्व सल्लेखना तो धारण कर ली हो परन्तु मन में यह भाव उसके हों कि अभी कुछ काल और जीता रहूँ तो अच्छा है ऐसी जीने की अभिलाषा रखना जीवित आसमन नामका पहला अतिचार है। २. सल्लेखना धारण करने के पीछे कुछ वेदना होती हो, नग्न शरीर रखने से ठंड लगती हो या किसी प्रकार की पीड़ा उपस्थित हो गई हो तो ऐसी अवस्था में उसे शान्ति से सहन नहीं करके यह विचार मन में लाना कि जल्दी ही मरण हो जाय तो मैं इस बाधा से मुक्त हो जाऊँ ऐसा विचार आना मरण आसमन अतिचार है। ३. पूर्व में मित्रों के साथ की गई धूलिक्रीड़ा आदि क्रीड़ाओं का स्मरण १५. परदातृव्यपदेशः सचित्त निक्षेप तत्पिधाने च । कालस्यातिक्रमणं मात्सय्यं चैत्यतिथि दाने ।। १९४ ।। पु. सि. अर्थ - १. स्वयं अपने हाथ से आहार न देकर अन्य से दिलवाना, २. आहार की सामग्री को हरित पत्रादि पर रखकर आहार देना, ३. हरित पत्रादि से ढके आहार को देना, ४. आहार बेला समय टालकर आहार देना, अनादर भाव से आहार देना अथवा अन्य दाता के साथ द्वेष कर आहार देना - २. ईर्ष्या से आहार देना ये पाँच अतिथि संविभाग व्रत के अतिचार हैं ।। १५ ॥ SANATSALHARSANSA Z A NARARARANASAVARANZ धर्मानन्द श्रावकाचार-३०९
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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