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________________ Sakatan Ratatatata KNANANAGUTATAKRIRALARUARA वृद्धावस्था आ जाने पर किसी प्रकार भी जिनका निवारण न हो सके और जो मृत्यु काही कारण जान पड़े ऐसा दुष्काल पड़ जाने पर, रत्नत्रय धर्म की रक्षा के लिये भले प्रकार विधि सहित सल्लेखना व्रत धारण करना चाहिए। यहाँ शंका हो सकती है कि - क्या सल्लेखना आत्महत्या नहीं है ? आचार्य कहते हैं - नहीं है। क्योंकि मरण के साथ आचार्यों ने यहाँ समाधि विशेषण अधिक जोड़ा है। मरण तो आयु का अन्त आने पर शरीर का छूटना है और समाधिमरण - समाधिपूर्वक मरण में आत्मा की प्रायः पूर्ण सावधानी रहती है। मोह व क्रोधादि कषायों को जीता जाता है, इंद्रियों को वश में कर चित्त की शुद्धि की जाती है। अतः इन सब कारणों से लेखन या समाधि आत्महत्या नहीं अपितु कायादि विकारी भावों पर प्राप्त की गई विजय है। और आत्महत्या - आयु का अन्त नहीं आने पर भी क्रोधादि कषाय के आवेश में या मोह के वशीभूत होकर, विष खाकर, छुरी भोंककर, जल में कूदकर, अग्नि में जलकर, शस्त्र चलाकर स्वयं मरता है वह नियम से आत्महत्या है। इसलिये जिसके तीव्र कषाय और प्रमाद योग है वहीं आत्मघाती है। सल्लेखना मरण करने वाला न तो मरण चाहता है और न मरने की चेष्टा ही करता है। वह तो केवल मरण समय निश्चित जानकर कषाय एवं शरीर को शांत भावों से कृष करता हुआ सल्लेखना धारण करता है। अत: वह आत्महत्या नहीं है ॥२॥ २. उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च निः प्रतीकारे । ___ धर्माय तनु विमोचनमाहुः सल्लेखनामाः ॥ १२२ ॥र. क. श्रा.। अर्थ - गणधर देव भगवन्त धोर उपसर्ग आने पर, अत्यन्त वृद्धावस्था जो संयम में घातक होआ जाये और असाध्य रोग - जिसका उपचार असंभव हो उस समय संयम धर्म की रक्षा करने के हेतु से शरीर परित्याग करने को सल्लेखना कहते हैं। हर्ष और प्रसन्नता से इसमें आत्मतुष्टि पूर्वक शरीर त्याग किया जाता है। स्वाधीनता पूर्वक ॥ २॥ SAURAVERUNĀRALANANLARINAKARARAAARRUARA धमनन्ह वायफाचार २७६
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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