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SiasassweKERSeREMERSONATURANASANARASAerawasanasa वाला पुरूष मन, वचन, काय को वश करके राग-द्वेष रूप परिणामों का अभाव करके उर में समता भाव धर कर शुद्ध ध्यान की प्राप्ति के लिये सामायिक करता है।२॥ • इसकी प्रतिज्ञा
अब से इतनी देर तक, करूँ अन्य सब त्याग। यह कहि आत्म ध्यान में, सुस्थिर चित से पाग॥३॥
अर्थ - सामायिक करने गला काल की मर्यादा लेदर माल गायों का त्याग कर तथा अपने सिर के केशों को अच्छी तरह बांधकर मुष्टि बंधन करके, आसन बंधन करके, जब तक ये नहीं खुलेंगे तब तक की मर्यादा लेकर अपने चित्त को स्थिर कर आत्मा का ध्यान करें॥३॥
२. रागद्वेष त्यागानिखिल द्रव्येषु साम्यावलंब्य । तत्त्वोपलब्धि मूलं बहुशः सामायिक कार्य ।
__ अर्थ - सामायिक करने के पूर्व सम्पूर्ण राग-द्वेष का परित्याग कर अशेष द्रव्यो में साम्यभाव समताभाव स्थापित करना चाहिए, क्योंकि कहा है - "समता सामायियं नाम" अर्थात् साम्य ही सामायिक है। सामायिक का प्रयोजन क्या ? तत्त्वोपलब्धि अर्थात् तत्त्वपरिज्ञान, आत्मा भी तत्त्व है, आत्म स्वरूप का परिज्ञान सामायिक से होता है। अतएव आत्मार्थियों को अधिक से अधिक सामायिक करना चाहिए। रागद्वेष का त्याग-परिहार करना चाहिए ॥ २॥ ३. मूर्धरुहमुष्टि वासो बन्धं, पर्य्यङ्कबन्धनं चापि।
स्थानमुपवेशनं वा समयं जानन्ति समयज्ञाः ॥ ९८ ।। र. क. श्रा. ।।
अर्थ - आगम के अध्येता, ज्ञाता पुरूष साधक जितने समय तक निम्न क्रियाएँ रहे उतने काल तक एकाग्र चिन्तन को सामायिक कहते हैं यथा जैसे - केशबंधन-चोटी में गांठ लगाना, मुष्टिबंध - अपने हाथ की मुट्ठी करना-बांधना, वस्त्र बांधना, पद्मासन, खड्गासन-खड़े होना आदि क्रिया कर यह नियम करना कि जब तक ये बंधे रहेगे, आसन स्थिर रहेंगे तब तक मैं निर्विकल्प, निराकुल रहकर साम्यभाव से सामायिक करूंगा।।३।। RAMANARASIRasursarsawareAMARATHIKARIRanamancesarea
धर्गानन्द श्रावकाचार २५२