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________________ XARANTERENUNATARUNARARAQ a raca RARAUNANG पंचुंबरसहियाइं परिहरेइ इय जो सत्त विसणाई। सम्मत्त विसुद्धमइ सो दसणसावयो भणिओ॥ अर्थ - जो सम्यग्दर्शन से विशुद्ध बुद्धि जीव पंच उदम्बर सहित सातों व्यसनों का परित्याग करता है वह प्रथम प्रांतमाधारी दर्शन श्रावक कहा गया है ॥२॥ • अणुव्रतों के नाम अहिंसा सत्य अचौर्य पुनि परिग्रह का परिमान । स्वत्रिय तोष परत्रिय त्यजन, इमि पंच अणुव्रत जान ।। ३॥ अर्थ - अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत अपनी स्त्री में संतोष, परस्त्री का त्याग अर्थात् ब्रह्मचर्याणुव्रत एवं परिग्रह परिमाणुव्रत ये पाँच अणुव्रत के भेद हैं ॥३॥ २. दृष्ट्यादि दशधर्माणां निष्ठा निर्वहणं मता। तथा चरति यः स स्यान्नैष्ठिकः साघकोत्सुकः॥ अर्थ - जो श्रावक उत्तम क्षमादि दश धर्मों को धारण करता है वह सम्यादृष्टि माना जाता है। जो इन धर्मों का आचरण करने में तत्पर रहता है वह नैष्ठिक साधक कहा जाता है।॥ २॥ ___३. हिंसाऽसत्यस्तेयाब्रह्म परिग्रह निवृत्ति रूपाणि ज्ञेयान्यणुव्रतानि भवन्ति पंचाऽत्र ।। २. अहिंसा सत्यमस्तेयं त्यागौ मैथुन वर्जनं । पंचस्वेतेषु सर्वे धर्माः प्रतिष्ठिताः॥ अर्थ - हिंसा, असत्य, स्तेय, चोरी, अब्रह्म, मैथुन सेवन और परिग्रह संग्रह प्रवृत्ति ये पांच पाप हैं। इन पाँचों का त्याग करने से अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रह त्याग रूप पाँच धर्म-व्रत कहलाते हैं। ये पाँचों अणु और महत रूप दोनो प्रकार से धर्म ही में निष्ठ हैं, गर्भित हैं।।३।। RAMANITAssasareasasalarismasasursamasatara यानन्द नानकातार~२०३
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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