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SainaSHEELERamanarsusreasarasaMaratsargamusASISAREAsia • मांस सेवन से हानि
मांस भखें से क्रूरता उपजै मन के माँहि ।
दया भाव नश जात है उपजै नरकों माँहि ।। २७ ।। अर्थ - माँस भक्षण से मन में क्रूरता पैदा हो जाती है, दया की भावना उसके चित्त से निकल जाती है। तथा हिंसानन्दी रौद्रभ्यान पूर्वक मरण कर वह नरकों में पैदा होता है। विशेष कथन पहले कर चुके हैं।। २७ ।। •शराब से हानि
जीव अनन्तों घात से उपजै मद्य सुजान। मोहित कर अज्ञान भर, करै धर्म का धात ॥ २८ ।।
शराब - अनन्त जीवों के घात पूर्वक शराब बनती है और पीने वाले को वह ज्ञान शून्य दशा में ले जाती है अर्थात् उसकी विवेक शक्ति सुसुप्त हो जाती
आदि सभी बुरी आदतों को वह (जुआ) अधिपति, दोषों का खजाना और पाप का बीज है। विकट नरक को पहुँचाने का प्रथम मार्ग है ऐसा जानकर कौन विशद बुद्धिविवेकी जुआ में प्रवृत्ति करेगा? अर्थात् जुआ खेलना विवेकी जन पसन्द नहीं करेंगे।
इष्ट मित्र भी उस जुआरी से द्वेष को प्राप्त हो जाते हैं - श्लोक - द्यूतमेतत् पुराकल्पे इष्ट वैरकं महत् ।
तस्मात्यूत न सेवेत हास्यार्थमपि बुद्धिमान् । अर्थ - पुराने मित्र भी उस जुआरी से वैर को प्राप्त हो जाते हैं इसलिये कभी भी बुद्धिमानों को हँसी में भी जुआ नहीं खेलना चाहिए। और भीश्लोक - सर्वानर्थ प्रथमं शौचस्य सदा विनाशकं ।
दूरात्परिहर्तव्यं चौर्यासत्यास्पदं द्यूतम् ॥ अर्थ - जो सभी अनर्थों का प्रथम मूल कारण है। शुचिता का विनाशक है, चोरी और असत्य का स्थान है ऐसे चूत कर्म-जुआ को दूर से ही छोड़ देना चाहिए ।। २६ ।। SANHU ARALAALATASARAS RASTERA RETRAGES
धर्मानन्द श्रावकाचार--१८६