SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ZKANSIERADUCANA DAN NASARUDINARI ÁRUNURUNAN शमन होता है क्योक शौच या पेशाब को जाने पर उसे बाएँ या दायें कान में चढ़ाने का उल्लेख है। विधि पूर्वक धारण किया गया यज्ञोपवीत एक उत्तम ताबीज का काम करता है। इससे भूतप्रेतादि की बाधा नहीं होती है।॥ २४ ॥ यज्ञोपवीत धारण करने का मंत्र इस प्रकार है - “ॐ नमः परमशान्ताय शान्तिकराय पवित्रीकृताय अहं रत्नत्रय स्वरूपं यज्ञोपवीतं दधामि, मम गात्रं पवित्रं भवतु अहँ नमः स्वाहा।" • सप्त व्यसन त्याग - जुआ मांस शराब पुनि, वेश्यागमन शिकार। चोरी पररमणी रमन, सप्त व्यसन निरवार ॥ २५ ॥ अर्थ - व्यसन सात हैं - १. जुआ खेलना, २. मांस खाना, ३. शराब पीना, ४. वेश्या सेवन, ५. शिकार करना, ६. चोरी, पर स्त्री रमण ॥ २५ ।। २५. द्यूतमांस सुरावेश्याऽखेट चौर्यपराङ्गना। ___ महापापानि सप्तैते व्यसनानि त्यजेबुधः ।। अर्थ - जुऔं खेलना, माँस खाना, शराब पीना, वेश्या सेवन करना, शिकार खेलना, चोरी करना, परस्त्री सेवन करना - ये सात व्यसन जिनागम में कहे गये हैं। जो महाहाप के कारण हैं। (व्यसन - बुरी आदतों को व्यसन कहते हैं) १. जुआँ खेलने का दुष्फल रजम्भंसं वसणं बारह संवच्छराष्णि वणवासो। पत्तो तहावमाणं जूएण जुहिट्ठिलो राया ॥ १२५ ॥ व. श्रा.। अर्थ - जुआं खेलने से युधिष्ठिर राजा राज्य से भ्रष्ट हुए बारह वर्ष तक वनवास में रहे तथा अपमान को प्राप्त हुए। २. उज्जाणम्मि रमंता तिसाभिभूया जलत्ति णाऊण । पिबिऊण जुण्णमज्जं णट्ठा ते जादवा तेण ॥ १२६ ॥ वसु. श्रा.। MAHARAGARMATHEMETERSARITAMARATRasasasarasanaSC धर्मानपद श्रावकाचार--१८३
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy