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हिंसकादि तत्व -
हिंसक हिंसा कम पुनि, हिंस्थ हिंसाफल चार ।
इनका तत्त्वविचारिगृही, त्यागत हिंसा भार ॥ २० ॥
अर्थ - हिंसा के संदर्भ में चार बातें विचारणीय हैं १. हिंसक, २. हिंसा, ३. हिंस्य, ४. हिंसा का फल |
हिंसा जब क्रियान्वित होती है तब चार प्रश्न उपस्थित होते हैं।
१. हिंसक कौन ? जो हिंसा करने वाला है वह हिंसक है, विशेष लक्षण इस प्रकार है प्रमाद पूर्वक स्व और पर के द्रव्य प्राण और भाव प्राणों का उच्छेद हिंसा है। इसका पूर्ण खुलासा तृतीय अध्याय में किया गया है, समाधान वहाँ से प्राप्त करें ।
२. हिंसा - " प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा" प्रमाद योग से अपने अथवा अन्य किसी के प्राण का व्यपरोपण करना, पीड़ा देना हिंसा है ।
३. हिंस्य - जो घाता जाय वह हिंस्य है। अथवा जिसकी हिंसा हुई वह हिंस्य है। जिनशासन में एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक किसी भी जीव को हिंस्य नहीं कहा। अर्थात् हिंसा में धर्म मानना जिन धर्म के विपरीत बात है ।
४. हिंसा का फल हिंसा दुर्गति का द्वार है जैसा कि ज्ञानार्णव में बताया भी है- “हिंसैव दुर्गतेद्वारं हिंसैव दुरितार्णवः । हिंसैव नरकं घोरं हिंसैव गहनं तमः । " १९, अ. ८ ।
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हिंसा ही दुर्गति का द्वार है, पाप का समुद्र है तथा हिंसा ही घोर नरक और महान्धकार है।
और भी यत् किंचित् संसारे शरीरिणां दुःखशोकभयबीजम् ।
दौर्भाग्यादि समस्तं तद् हिंसा संभवं ज्ञेयम् ॥ ज्ञा. अ. ८ / १९ ।
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ACASABASABASASAURSALAGAUNSTSAER धर्मानन्द श्रावकाचार १७५