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________________ ENCHCACACGACTUALASISKELELEASANAETEREKEKSASASANAETER ... यदि हिंसा धर्मसाधनं मत्स्यबन्ध ( बधक) शाकुनिक शौकरिकादीनां सर्वेषां अविशिष्टा धर्मावाप्तिः स्यात् । यदि हिंसा को धर्म का साधन माना जायेगा तो मछियारे भील आदि सर्व हिंसक मनुष्य जातियों में अविरोध रूप से धर्म की व्याप्ति चली आयेगी । प्रश्न - यज्ञात्कर्मणोऽन्यत्र बघः पापायेति चेत् ऐसा नहीं होता क्योंकि यज्ञ के अतिरिक्त अन्य कार्यों में किया जाने वाला बध पाप माना गया है। उत्तर - न, उभयत्र तुल्यत्वात् । नहीं, यह कथन ठीक नहीं क्योंकि हिसां की दृष्टि से दोनों तुल्य हैं। - तादर्थ्यात् सर्गस्येति चेत् ॥ २२ ॥ यज्ञार्थ पशवः सृष्टाः स्वयमेव स्वयंभुवा (मनुस्मृति / ५ / ११ / इति । अतः सर्गस्य यज्ञार्थत्वात् न तस्य विनियोक्तुः पापमिति, तन्न किं कारणं । साध्यत्वात् । अर्थ प्रश्न शंकाकार (विपक्षी) का कहना है कि यज्ञ के अर्थ ही स्वयंभू ने पशुओं की सृष्टि की है अतः यज्ञ के अर्थ बध पाप का हेतु नहीं हो सकता है। उत्तर यह पक्ष प्रसिद्ध है क्योंकि पशुओं की सृष्टि ब्रह्मा ने की है यह बात तो अभी सिद्ध करने योग्य है अर्थात् अभी तक असिद्ध है। मन्त्रप्राधान्यात् अदोष इति चेत् ॥ २४ ॥ प्रश्न - यथा विषं मन्त्र प्राधान्यात् उपयुज्यमानं न मरणकारणं तथा पशुबधोऽपि मंत्रसंस्कार पूर्वकः क्रियमाणो न पाप हेतुरिति - - शंकाकार ( विपक्षी) पुनः कहता है - मंत्र की प्रधानता के कारण यह हिंसा निर्दोष है। जिस प्रकार मंत्र की प्रधानता के कारण प्रयोग किया विष मृत्यु का कारण नहीं होता है उसी प्रकार मंत्र संस्कार पूर्वक किया गया पशुवध भी पाप का हेतु नहीं हो सकता है। तन्न किं कारणं । प्रत्यक्ष विरोधात् (राजवार्तिक अध्याय - ८) यदि मन्त्रेभ्यो याज्ञे कर्मणि पशून् निपातयन्तः दृश्येरन्, मन्त्रबलं श्रद्धीयेत्, दृश्यते तु रज्ज्वादिभिर्मारणम् । तस्मात् प्रत्यक्ष विरोधात् मन्यामहे न मन्त्रसामर्थ्यमिति । हिंसादोषाविनिवृत्तेः ।। २५ ।। पूर्वोक्त विपक्षी की शंका का निराकरण करते हुए श्री अकलंक देव स्वामी... LENKCINACICLUASTELLFELSPETEZETURCJUANANAALALACA धर्मानन्द श्रावकाचार १३३
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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