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लोभ - किरिमिजी का रंग अत्यन्त गाढ़ होता है, बड़ी कठिनाई से छूटता है, उसी प्रकार जो लोभ सबसे ज्यादा गाढ़ हो उसको ही किरिमिजी समान होने से अनन्तानुबन्धी लोभ कहते हैं।
२. अप्रत्याख्यानावरण कषाय- जो देश संयम का धात करे उसे अप्रत्याख्यानावरण कषाय कहते हैं। इसकी वासना का उत्कृष्ट काल ६मास है।
अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ की शक्तियाँ अनन्तानुबंधी की अपेक्षा कम हैं। क्रोध की तुलना भूमि पर खींची गई रेखा से, मान की तुलना हड्डी से, माया की तुलना मेढ़े के सींग से, लोभ की तुलना चक्रमल से की गई है। (अस्थि में शैल की अपेक्षा कठोरता कम है इत्यादि प्रकार से अर्थ लगाना चाहिए।
प्रत्याख्यानावरण - जो कषाय सकल संयम का घात करनी है उसे प्रत्याख्यानावरण कषाय कहते हैं। धूलिमय भूमि पर खींची गई रेखा के समान क्रोध, गीली लकड़ी के समान अल्प नम्रता वाली मान कषाय, गोमूत्र के समान वक्रता वाली माया कषाय, शरीर के मल के समान लोभ कषाय होती है इन्हें प्रत्याख्यानावरण जानना चाहिए। इसकी वासना का काल १५ दिन जिनागम में वर्णित है।
संज्वलन कषाय - जो यथाख्यात चारित्र को रोके उसे संज्वलन कषाय कहते हैं। जल में खींची गई रेखा के समान क्रोध, बेंत के समान मान, खुरपा के समान माया और हल्दी के रंग के समान लोभ को संज्वलन जानना चाहिए। इसकी वासना का काल अन्तमुर्हत है। ___ अब संदर्भ प्राप्त वेद का स्वरूप भी जानना चाहिए अतः उसका संक्षेप में उल्लेख करते हैं -
वेद का स्वरूप और भेद- वेद्यते इति वेदः लिङ्गमित्यर्थः- (सर्वार्थसिद्धि)
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धर्मानन्द श्रावकाचार--१२१