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________________ PRASTRAMRsamanarsusRESARKOREARRERRANGERasamaesasasxe प्रत्याख्यानावरण संबंधी - ९. क्रोध, १०. मान, ११, माया, १२. लोभ । संज्वलन कषाय गत १३. क्रोध, १४. मान, १५. माया, १६. लोभ । इनमें हास्यादि नोकषाय मिलाने से २५ भेद होते हैं। हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरूषवेद, नपुंसक वेद - ये हास्यादि नौ भेद इषत् कषाय होने से कषाय के भेद में ही वर्णित हैं। इन सबका अलग-२ स्वरूप निर्देश आगे करेगें | यहाँ पर मात्र कषाय किसे कहते हैं यह विवक्षा ही मुख्य है। कषाय का लक्षण जिनशासन में इस प्रकार मिलता है - कषति हिनस्त्यात्मानं दुर्गति प्रापयति इति कषायः । जो आत्मा को - जीव को दुःखी करता है, आत्म स्वभाव का घात करता है उसे दुर्गति में ले जाने में कारण बनता है उसे कषाय कहते हैं। दृष्टान्त द्वारा इसी लक्षण को पुष्ट करते हुए सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ में कहा है - कषायो न्यग्रोधत्वक् विभीतकहरीतकादिकं, वस्त्रे मंजिष्ठादिरागश्लेष हेतुर्यथा। तथा क्रोधमानमाया लोभ लक्षण: कषायः, कषाय इव आत्मनः कर्मश्लेषहेतुः॥ ___ बड़ पीपल आदि की छाल को उबालकर तैयार की गई काषाय, हरीतक और विभीतक अर्थात् हरड़, बहेड़ा को उबालकर तैयार की गई काषाय और मंजिष्ठादिक के चूर्ण से तैयार काषाय को वस्त्र में डालने पर रंगे हुए वस्त्र का रंग जैसे पक्का हो जाता है, छूटता नहीं उसी प्रकार क्रोधादि कषाय भी कषाय के समान ही कर्म कालिमा की शक्ति को सुदृढ़ करते हैं अतः कषाय को कषाय कहना सार्थक है यह नाम अन्वर्थ संज्ञक है।। २ ।। • २. प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा - तत्वार्थ सूत्र, स. अ. सू. १३ । अर्थ - प्रमाद पूर्वक किया गया प्राण घात हिंसा है।.. *BARAKANAK KANAKAKARARASANAKAKATAKANA धर्मानन्द श्रावकाचार--११५
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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