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________________ -१. ४७] - पुण्यपापफलवर्णनम् - 45) पट्ट चीनं द्वीपज काञ्चिबालं वासोजातं जायते पुण्यक्लुप्तम् । पालम्बाद्य भूषणं पुण्यगेहै भूषा मन्ये प्रत्युतैषां च देहैः ॥ ४५ 46) रथ्यानिपातिमलकर्पटखण्डक्लृप्तं कौपीनमेव बहुनागफणं हि वासः। येषां गले तरलहार इवैकतन्तु स्तेषामलं सियभूषणवर्णनाभिः ॥ ४६ 47) तैलानि चारुसुमनश्चयवासितानि स्नानानि सन्ति भुवनेश्वरदुर्लभानि । गन्धाः सुगन्धसुरभीकृतविश्वदेशा जात्यादिपुष्पनिचयास्त्रिदिवोद्भवा वा ॥ ४७ सार्धचंद्र - अर्धचन्द्र से सुशोभित हैं तो भाग्यहीन जन भी सार्धचन्द्र होते हैं - गलहस्त देकर दूर किये जाते हैं, शंकर यदि कपाली - कर्पट (खोपडी) के धारक - हैं तो पुण्यहीन जन भी कपालीखप्पर में भिक्षा माँगनेवाले - होते हैं, तथा जिस प्रकार शंकर भूतिमण्डित - भस्म से सुशोभित-हैं उसी प्रकार पापी जन भी भूतिमण्डित -योग्य वस्त्रादि के अभाव में धूलिधूसरितहुआ करते हैं। तात्पर्य यह कि धर्म से विहीन प्राणी अतिशय दरिद्र व निन्दा के पात्र होते हैं ॥४४ पुण्यवान लोगों को पुण्योदय से चीनपट्ट (चीन देश का उत्तम वस्त्र) तथा द्वीप में उत्पन्न हुआ कांचिवाल इत्यादि विविध प्रकार के वस्त्रों का समूह प्राप्त होता है। उनके गले में सरल और लंबा मुक्ताहार होता है। उनके पुण्ययुक्त देहोंसे ही मानो उनकी भूषा होती है ॥ ४५ इसके विपरीत जो दरिद्री हैं उन की लंगोटी मार्ग में गिरे हुये मलिन वस्त्र के टुकडों से बनी हुयी होती है, शरीर के ऊपर का वस्त्र अनेक भागों से बना हुआ होता है, तथा गले में चंचल हार के समान एक तन्तुवाला वस्त्र रहता है। उनके वस्त्र और अलंकारों का वर्णन निरर्थक है। ॥४६।। पुण्यात्मा जन को सुंदर पुष्पसमूह के संसर्ग से सुवासित तेल, राजाओं को भी दुर्लभ ऐसे स्नान, अपनी सुगंधि से सर्व प्रदेशों को सुगंधित करने वाले गंध-चूर्ण अथवा इत्र आदि ४५) 1 रत्नकम्बलम् . 2 वस्त्रसमूहम्. 3 पुण्यरचितं पुरुषस्य. 4 हाराद्यम्. 5 व्याघुटय. 6 पुण्य. सहितानाम् । ४६) 1 मार्गपतितवस्त्रखण्डरचितम्. 2 फट्ट वस्त्रम्. 3 वस्त्रम्. 4 पुण्यरहितानाम् . 5 पापिनाम्. 6 पूर्ज [] ताम्. 7 वस्त्र । ४७) 1 मनोज्ञपुष्पसमूहवासितानि. 2 स्वर्णोद्भूता इव।
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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