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________________ १६ F धर्म रत्नाकरः - 41 ) पत्रैर्नागरखण्डपत्तनभवैः कर्पूरवल्ल्या दिजैः' पूगैरीश पुरादिजैर्विरचितं सच्चूर्णसंभावितम् । ककोलादिफलैरलंकृतमलं कर्पूरवेधोल्वणं ताम्बूलं भुवि भोगमूलमपरे # खादन्ति रामार्पितम् ।। ४१ 42 ) नामाप्यन्ये न जानन्ति तान्बूलमिति भक्षणम् । केन संपाद्यतां तेषां पापोपहतजन्मनाम् ॥ ४२ 43) वैडूर्यमुक्ताफलपद्मरागरत्नोच्चया द्वीपसमुद्रजा ये । धन्यस्य धामैत्र च धाम तेषां परं धुनीनामिव वारिराशिः ॥४३ 44 ) कपर्दिनः कथंचित्स्युः सार्धचन्द्राः कपालिनः । चित्रं वृषदरिद्राव स्थाणवो # भूतिमण्डिताः ॥ ४४ [ १. ४१ और घीसे रहित नीरस व कुत्सित तुच्छ अन्न को हाथ में लेकर सूर्यास्त के समय खाया करते हैं ।। ४० ॥ पुण्यशाली पुरुष नागरखण्ड नामक नगर में उत्पन्न हुये, कर्पूरवल्ली व नागवल्ली आदि के पत्रों से रचे गये, ईशपुर आदिक नगरों में उत्पन्न हुयी सुपारियों से मिश्रित, जिसमें उत्तम चूना लगाया गया है, कंकोल, इलायची व जायपत्री आदिकों से अलंकृत -- सुगंधित, कर्पूर चूर्ण से युक्त ऐसे तांबूल को जो कि भोग का मूल कारण है और जो स्त्रियोंने अपने हाथ से दिया है, खाया करते हैं ।। ४१ ।। किन्तु पापी लोग खाना तो दूर रहा वे तो ताम्बूल का नाम भी नहीं जानते हैं । पाप से जिनका जन्म व्यर्थ हुआ है ऐसे लोगों को ताम्बूल भला कौन देता है ? कोई भी नहीं ॥ ४२ ॥ जैसे नदियों का निवास स्थान समुद्र है वैसे द्वीप तथा समुद्र में उत्पन्न हुये इन्द्रनीलमणि, मुक्ताफल व पद्मराग आदि रत्नों के समूह पुण्यशाली पुरुषोंके घर को ही अपना घर समझ कर वहीं रहा करते हैं ||४३|| वृषदरिद्र - धर्महीन ( वृषभहीन) - मनुष्य कथंचित् स्थाणु (शंकर) के समान हैं, यह आश्चर्य की बात है। स्थाणु (शंकर) जैसे कपर्दी - जटाजूट से संयुक्त हैं वैसे ही भाग्यहीन मनुष्य भी कपर्दी पैसों के अभाव में बाल न बनवा सकने से जटा जूट के धारक - होते हैं, शंकर यदि ४१) 1 उत्पन्नंः . 2 इन्द्रैः. 3 उत्कटम्. 4 पुण्यसंयुक्ताः । ४२ ) 1 पापा:. 2 दीयते . 3 पीडित । ४३ ) 2 ईश्वरस्य 3 दरिद्रपक्षे पुण्यर.. 1 रत्नोच्चयानाम्. 2 नदीनाम् 3 समुद्र । ४४ ) 1 कोपीन कथंचित्स्यु: ( ? ) हिताः, ईश्वरपक्षे एकवृषभोदय:. 4 ईश्वरा: ।
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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