________________
-१. २१]
- पुण्यपापफलवर्णनम् - 19) सेव्यन्ते गर्भवासे भटबुधवनिभिः केचिदन्ये शिशुत्वे
लोवैरालोक्यमाना अहमहमिकया बालचन्द्रेण तुल्याः । वत्स्यन्ते ऽमा शुभाथैः स्वजनपरिजनैयौवने वाद्ध के ऽन्ये
कीर्तिव्याप्तत्रिलोका अपि रियुनिवहैः पालिताज्ञाः सदैव ॥ १९ 20) आनीयन्ते गृहे स्वे कथमपि कैः कै?चितैः संभ्रियन्ते
उत्सायन्ते ततो ऽन्ये विचलितचित्ताः कैन कैरप्यनिष्ठैः । धन्यास्तद्वान्त्यनिष्ट परमिह शिष्टा गहुते सर्वथेष्टं
पापानां वैपरीत्यादिदमपि कष्टं कस्य वच्मो विचार्यम् ॥ २० 21) नन्द्या जीयाश्च भूयास्त्रिभुवनजनताखण्डलो नित्यमेवं
गन्धर्वैर्गीयमानः सुललितवचनैर्मागधैः पठ्यमानः । प्रातः प्रातर्विलासैरपगतसुकृतागोचरैः प्राय॑मानो निद्रामुन्निद्रपुण्य॑स्त्यजति नृपशतैनभ्यमानाघ्रिपद्मः ॥२१
कितने ही जीव गर्भवास में ही शूर, विद्वान् और धनिकों से सेवित होते हैं, अन्य कितने ही जीव बाल्यावस्था में बालचंद्र के-द्वितीया के चन्द्रमा के-समान वृद्धिंगत होते हुये लोगों के द्वारा अहमहमिका से-मैं पूर्व में, मैं पूर्व में, इस प्रकारकी आतुरतासे-देखे जाते हैं,कितने ही जीव तारुण्यावस्था में स्वजन और परिजनों के साथ शुभ धनादि पदार्थों से संयुक्त होकर सुखपूर्वक रहते हैं, तथा जिनकी आज्ञा को शत्रुसमूह शिरोधार्य करते हैं ऐसे कितने ही पुण्यशाली जन अपनी कीति से त्रिलोक को व्याप्त करते हुये वृद्धावस्था में सदैव सुख से रहते हैं ॥१९॥
पुण्यशाली जीवों को कौन कौन से मनुष्य अपने घर पर नहीं लाते हैं व उनका समुचित पदार्थों के द्वारा भरण-पोषण नहीं करते हैं ? अर्थात् पुण्यात्मा पुरुषों को कितने ही मनुष्य अपने घर पर लाकर उन का अनेक उत्तमोत्तम वस्तुओं के द्वारा पोषण किया करते हैं । इस के. विपरीत अस्थिरचित्त पापी प्राणिओं को कौनसे मनुष्य अनिष्ट वस्तुओं के साथ अपने घरसे नहीं निकाल देते हैं ? अर्थात् पापी जनों को लोग अपने घरसे बाहर निकाल दिया करते हैं। प्रशस्त. जन यहाँ अनिष्टका वमन करते हैं, उसे नष्ट करते हैं और शिष्ट जन सर्वथा इष्ट को ग्रहण करते हैं । इस प्रकार विपरीतता से पापियों को प्राप्त होनेवाले शोचनीय कष्ट की वार्ता किससे कही जाय ? ॥२०॥
आप धनादि से समृद्ध होवें, आपको विजय प्राप्त हो, आप तीनों लोगों की जनता के
१९)1 पुण्यवन्तः. 2 Dवश्यन्ते, सेव्यन्ते. 3 सार्धम्. 4 समूहैः । २०) 1 स्वकीये. 2 महता कष्टेन.3 पोष्यन्ते. 4 निजग हान्निष्कास्यन्ते. 5 पापिजनाः . 6 तदनिष्टं वान्ति त्यजन्ति छर्दयन्ति.7 जगति.8 विरुद्धत्वात. १ कथयामः । २१) 1 भव. 2 इन्द्रः. 3 स्तुत्यमानः (?). 4 कथंभूतैर्विलासः.5 निद्रां त्यजति. 6 प्रकाशितपुण्यः, पुण्यवानित्यर्थः ।