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________________ ४६ - धर्मरत्नाकरः - विषय श्लोकाङक २७*१-३ २८ २९-३२ ३४-३५ ३६-३८, ४० १-११ १*२-६ १७ २-३ ४-४*१ लोभ का स्वरूप परिग्रह की अस्थिरता लोभ का फल और उसके उदाहरण निर्लोभ का फल लोभ का त्याग करना हिंसादि पापों के परित्यागवत के भेद व्रतप्रतिमाधारी व्रतों से आत्मविशुद्धि १४. द्वितीय प्रतिमा का विस्तार रात्रिभोजन का त्याग रात्रिभोजन से हिंसा मध्याह्नकालपर्यंत आहारग्रहण रात्रिभोजन के बारे में भिन्न भिन्न मत भोजन का समय रात्रिभोजन के दोष रात्रिभोजनत्यागवत का माहात्म्य गुणव्रत और शिक्षाव्रत दिव्रत और उसका फल दिग्वत का दोष दिग्विरति व्रत का फल दिग्वत के अतिचार देशव्रत का स्वरूप बहुदेशविरति से अहिंसामहाव्रत देशवत के पाँच अतिचार देशव्रत का फल-उदाहरण पापियों को देशव्रत दुर्लभ देशव्रत से अभयदान अनर्थदण्डव्रती के नियम माँस के लोभ से प्राणिघात न करना पापमय उपदेश भी न करना मोर आदि प्राणियों को न पालना प्रमादचर्या का लक्षण शस्त्रों का त्याग करना अनर्थदण्डव्रत के पाँच अतिचार प्रयोजन के बिना पाप करना अधिक अनर्थकारक १०-१०*२ ११ १२-१३ १३*१ १४-१४*१ १४*२-१५ १६-१७ १८ २० - २१, २५*१ २२ २२*१-२३ २४ २४*१ २५ २५*१-२ २६-२७
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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