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________________ ૪૪ विषय आरम्भ-परिग्रहयुक्त मानव में दया का अभाव आत्महितैषी सत्पुरुष का वर्तन मैत्री का स्वरूप प्रमोद कारुण्य और माध्यस्थ्य उपर्युक्त भावनाओं से मोक्ष पुण्य और पाप का स्वरूप पाप की हीनाधिकता कोई कर्म निष्फल नहीं है मन का स्वरूप अहिंसामहाव्रत लोकव्यवहार के अनुसार प्रवृत्त होना निर्जरा प्रायश्चित्त - धर्मरत्नाकर: तीन प्रकारों से शुभाशुभ आस्रव बाह्य विधि से पापनाश नहीं प्रायश्चित विधि अहिंसाणुव्रत के पाँच अतिचार हिंसा हिंसा के परिणाम के उदाहरण अहिंसा - चिन्तामणि अभयदान की श्रेष्ठता असत्य का स्वरूप असत्य के प्रकार गर्हितवचन सावद्यवचन अप्रिय वचन असत्य से हिंसा वचन के प्रकार और उसकी ग्राह्माग्राह्यता सत्य के प्रकार दर्शनमोहनीय कर्म का स्वरूप दर्शनावरण और ज्ञानावरण कर्म का बन्ध सत्यव्रत के विघातक अतिचार नीचगो बन्ध उच्चगोत्रबन्ध दूसरों के साथ अप्रिय भाषण का परिणाम श्लोकाङक १२-१३ १४ १४१ १४२ १४३ १४*४ १४०५ १५ १५*१ १५*२-३ १५*४ १५*५ १६ १७-१८ १९-२१ २२-२३*१ २४-२५ २६ ३७-२८ ३१ २८१, ३२ ३२०१ - ४, ९ ३२०५ ३२०६ ३२७ ३२*८ ३२९-३६, ३९-४१ ४४-४५, ४९*१-२ ३७-३८ ४२ ४३ ४३१ ४६ ४७ ४८
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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