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- धर्मरत्नाकरः -
श्लोकाङक
४३०७ ४३५८ ४३*९ ४३१०-११ ४३*१२-१३ ४३२१४-१५ ४३*१६-४५
४६
४६*१ ४७-४८ ४८*१
४९११
विषय : अस्पृश्यों का स्पर्श होनेपर स्नानविधान व्रतधारी स्त्रियों को उपवासविधान विकाररहित नग्नता में दोष नहीं नग्नता अनिवार्य है । खडे होकर भोजन का प्रयोजन केशलोंच का प्रयोजन निर्विचिकित्सित गुण की प्रशंसा विचिकित्सा का स्वरूप विचिकित्सा नहीं करना भस्मलेपन आदि की स्तुति नहीं करना अमूढदृष्टित्व धारण करना अध्यात्मज्ञान के बिना,विद्वत्ता निरर्थक सम्यक्त्वाङग में प्रसिद्ध रेवती रानी भव्य जीव व्रती जनों के दोषों को ढंकता है सिद्ध परमात्माओं को पापमल नहीं दोषों को नहीं ढंकनेवाला धर्मबाह्य सम्यग्दृष्टि ने दूसरों को धर्म में स्थिर करना पूर्वकालीन साधु को संघ से पृथक् नहीं करना स्थितिकरण और स्थिरीकरण से परीषहादि नहीं धर्म में स्थिर करने वालों के उदाहरण साधर्मिकों में वात्सल्य करना वात्सल्य का स्वरूप विनीति व्यावृति भक्ति चाटुक्ति प्रार्चना मनियों से ईर्ष्या न करना वैयावृत्त्य बलिराजा का उदाहरण जिनधर्म की प्रभावना प्रभावना करनेवालों के उदाहरण . सम्यक्त्व से मोक्षलाभ ११. प्रथम प्रतिमा का विस्तार सम्यग्ज्ञान की उपासना के उपाय सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान में भेद
५३, ५६-५७ ५४-५५ ५८ ५९-६० ६०*१
६२
६३ ६३*१
६४
६५
६७
६८*१, ७०२१ ६९-७०
२-४