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४०
विषय
जीव का स्वरूप
जीव और कर्म परस्परप्रेरक
अजीव द्रव्यों का स्वरूप
आस्रव का स्वरूप
मोक्षमार्ग का मूल सम्यक्त्व
सम्यग्दर्शन का स्वरूप
देवमूढता
समयमूढता
लोकमूढता
- धर्मरत्नाकरः -
२७
बन्ध का स्वरूप
२८, ३४
बन्ध के बारे में आशका और उत्तर
२९
आत्मा पुद्गलों से भिन्न होनेपर भी अभेद की भ्रान्ति ३०-३३ संबर और निर्जरा का स्वरूप
मोक्ष का स्वरूप
पुण्य-पाप का स्वरूप
पुण्य-पापरहित लोगों में अद्वैत का प्रकाश महाविरति से मुनीन्द्रवृत्ति
सामान्य जनों के लिये एकदेशविरति
केवल गृहस्थधर्म का उपदेशक अज्ञानी है। श्रावक को मोक्षमार्ग का उपदेश
मूतायें मुक्ति के लिये प्रतिबन्धक
क्लेश देनेवाले कार्यं व्यर्थ हैं
'देव' शब्द कहने से दुख दूर नहीं होता
सच्चे देव - गुरु-शास्त्र की भक्ति पुण्य का कारण
देवादि की आराधना व्यर्थ है
मिश्र मूढबुद्धि को अनुमति देना
प्राणियों को दुष्प्रवृत्तियों में प्रेरणा नहीं देना गर्व से सम्यग्दर्शन की हानि
श्लोकाङक
२३-२४
२४१-२
२५--२६
छह अनायतन
शडका - दोष
कांक्षा- दोष
विचिकित्सा - दोष
सत्पुरुष मध्यस्थता को देखते हैं
अन्यदृष्टि प्रशंसा - दोष अन्यदृष्टिसंस्तव - दोष
सम्यग्दर्शन को मलिन करनेवाले कार्य
३५
३६
३७
३७*१-३८
३९
४०
४१-४२
४३
2 x 2. a
४४
४५
४६-४८
४९-५०
५१-५२
५३
५४
५५
५६
५७-५८* १
५८२
५८* ३
५९-६०
६१
६२
६३
६४
६५
६६
६७
६८-६९