________________
विषयसूची
श्लोकाडक ८३-८६
१-२, ३६-३७,
४, ३२
६-७
१३-१८ १९-२० २१
२२
२२१
विषय शास्त्र लिखवानेवाले परोपकारी ८. औषधदान का फल औषधदान का फल रोगग्रस्त संघ की उपेक्षा करनेवाला पापी वैयावृत्त्य का महत्त्व शरीर रोगों का घर शरीर का महत्त्व औषधदान धर्म है औषधदान की आवश्यकता औषधदान में दोष की आशङका आशङका का उत्तर धर्मप्रिय राजा का उदाहरण आहारादि अभिलाषायें स्वाभाविक हैं दानग्रहण से दाता के ऊपर उपकार आहार काम निर्मिति का कारण नहीं साधुओं के गुण ग्रहण करें तपस्वियों में दोषों का अभाव आरम्भ से हिसा नहीं आरम्भत्यागी मुनि भी औषधदान करते हैं औषधदाताओं के उदाहरण आशङका की अयोग्यता ९. सम्यक्त्व की उत्पत्ति शील का महत्त्व शील का अर्थ शीलपालन का फल । वीतराग आप्त है गुणों से प्रशंसा और दोषों से निन्दा ब्रह्मादि देव आप्त नहीं वस्तुस्वरूप के ग्रहण में आत्मानुभव आवश्यक मनुष्य की आप्ततापर शङका और उत्तर तीर्थंकरों की आप्तता के बारे में प्रमाणवाक्य उपदेशक की विशुद्धि से उपदेश की विशुद्धि उपदेशक के गुण आगम का स्वरूप वस्तु का स्वरूप
२३-२४ २५ २६-२७
२८
२९-३१, ३५ ३३-३४
.
W
५-६२१
६२५-६
९*१-१३२१ १४-१६२१ १६१२-२० २१ .. २२ .